Tuesday 22 November 2011

हिंदी भाषा का इतिहास - X : हिंदी भाषा और उसकी शब्दावली

हिंदी भाषा अंग्रेजी भाषा से कई मायनों में भिन्न है.
इसीलिए मैं किसी को इंग्लिश से हिंदी सीखने की सलाह नहीं देता हूँ. कुछ उल्खेनीय तुलनाएं हिंदी और अंग्रेजी भाषा के प्रयोग की....... 

(१) हिंदी संज्ञाएँ (noun ) या तो पुर्लिंग हैं या फिर स्त्रीलिंग. जैसे "कमला" स्त्रीलिंग है और "मोहन" पुर्लिंग है
(२) अधिकतर विशेषताएं (adjectives ) लिंग के साथ बदलती रहती हैं. उद्धरण के लिए "कमला सुन्दर दिखती है " और "मोहन मोटा लगता है" इत्यादि.
(३) क्रिया (verb ) भी बदलती है लिंक के साथ जैसे "कमला खाती है" और "मोहन पढ़ रहा है".
( ४) पूर्वसर्ग (preposition) जैसे "है", "था" इत्यादि संज्ञा/सर्वनाम के बाद में आते हैं जबकि अंग्रेजी में पूर्वसर्ग संज्ञा के पहले आते हैं. जैसे अंग्रेजी में हम कहते हैं की "Mohan is reading" लेकिन हिंदी में हम कहते हैं "मोहन पढ़ रहा है". अर्थात संज्ञा/सर्वनाम और क्रिया/विशेषण के संयुक्त प्रयोग में भी हिंदी का प्रयोग अंग्रेजी के प्रयोग से भिन्न है.
(५) अंग्रेजी में एक ही संबोधन कई लोगों के लिए किया जा सकता है. जैसे "you" का प्रयोग अंग्रेजी में बड़े और अपने से छोटे सभी के लिए उपयोग होता है, परन्तु हिंदी में अपने से बड़ो अथवा सम्मान में "आप" का और मित्रवत संबोधन में "तुम" का प्रयोग होता है.
(६) बहुत से शब्द इंग्लिश ने हिंदी से लिए हैं और इन्हें बुधिजीविओं ने स्वीकार भी है. जैसे
बाज़ार,  बंगला, कुली, गुरु, खाकी,  ठग, लूट, पैजामा,  योग और पंडित इत्यादि

Sunday 23 October 2011

पांचवी कक्षा दिनांक २३ अक्टूबर २०११

आज की कक्षा पुनः मैंने ली और हमेशा की भांति एकात्मता मंत्र के साथ कक्षा का आरम्भ किया.
कक्षा का आरम्भ "मेरा नाम क्या है " जैसे वाक्य से की गयी. बच्चों को बड़ा अच्छा लगा अपना अपना नाम बताने में. आपको याद होगा की हमने अपनी तृतीय कक्षा में बच्चों को घर पर इस वाक्य का अभ्यास करके आने को कहा था और जैसा मेरा अनुमान था की जिन बच्चों ने अभ्यास किया था उनकी समझ में तो आया परन्तु शायद उन बच्चों को जरूर बोरियत हुई होगी जो या तो उस कक्षा में नहीं थे या फिर अभ्यास नहीं कर पाए.
परन्तु शायद इसीलिए कक्षा में अध्यापकों की आवश्यकता है की वे पुनः अभ्यास कराएँ. और वैसा ही हम ने भी किया. एक बार फिर से बच्चों को वाक्यों की रचना करना सिखाया और उसके बीच बीच में शब्दों की रचना का भी अभ्यास किया. इसके पश्च्यात हम लोगों ने कुछ वाक्यों को लिखने का भी अभ्यास किया. यह वाक्यों की रचना हम आगे भी जारी रखेंगे और हमारी कोशिश रहेगी की इन वाक्यों से कुछ अर्थपूर्ण नैतिक ज्ञान बच्चों को इस सत्र की अंत, यानी कि जनवरी माह तक  सिखा सकें.
इस प्रकार से हमने अभी तक इतना तो कर ही लिया है....
                        एकात्मता मंत्र और गायत्री मंत्र का अभ्यास
                        वर्णाक्षरों का अभ्यास और दो-तीन अक्षरों से बनाने वाले शब्दों की रचना
                        हिंदी वाक्यों की रचना और पूर्ण विराम का परिचय;
                        संज्ञा और सर्वनाम

अपनी अगली कक्षा में हम संज्ञा और सर्वनाम का पुनः अभ्यास करेंगे और हिंदी भाषा के कुछ अन्य पहलू पढेगे. हमारी सहयोगी रीता जी ने कुछ सूचनाएं बच्चों को दी हैं. जैसे दीपावली के शुभ अवसर पर हमारी हिंदी कक्षा अगले सप्ताहांत नहीं लगेगी और अगली हिंदी कक्षा अब ६ नवम्बर को होगी.
आज कुछ नए बच्चे भी कक्षा में दिखे और सभी ने बड़े ख़ुशी के साथ कक्षा में भाग लिया. हिंदी कक्षा के अपने इस सत्र में हम लोग हिंदी - एक बोल चाल की भाषा के रूप में ले रहे हैं और इसलिए बच्चों को कक्षा में बहुत नहीं लिखना होता है.बच्चे इससे बहुत खुश हैं और एक बच्ची ने तो कहा की "पहले हम बहुत लिखते थे और अब बहुत पढ़ते हैं".अब अगली कक्षा, याद रहे जो ०६ नवम्बर को है, की जिम्मेदारी रीता जी की है.
सभी को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
शेष फिर.अपने विचार भेजते रहें. धन्यवाद 

एक विचार

कुछ समय पहले भारत का एक समाचार सुना की क्रिकेट की दुनिया के सितारे श्री सचिन तेंदुलकर अपने नए घर में शिफ्ट हो गए. बहुत अच्छा लगा कि श्री सचिन ने अन्य भारतीय बंधुओं कि ही भांति अपना घर पा लिया और इसके लिए उन्हें शत शत बधाई.
परन्तु बिना किसी किन्तु-परन्तु के मैं अपना कोई भी लेख नहीं लिख सकता और यहाँ पर भी मुझे सामंतवादी मानसिकता की बू सी आ रही है. हम भारतीय आज भी इन्हीं समाचाओं में रूचि लेते हैं कि दुनिया के एक विकास शील देश के कुछ नागरिक, या यूँ कहें कि कुछ ख़ास नागरिक, जब अपनी महत्वकान्शाओं का प्रदर्शन करते है तो हम सभी,  पत्रकार बंधू भी, उसे बड़ा चढ़ा कर दिखा करके देश  कि गरीब और ६० साल के आज़ादी की लूट में अपने को ढगा हुआ महसूस करवाते हैं. वो चाहे बोलीवूड  के सितारे हों या फिर खेल और व्यवसाय से जुड़े हुए विशेष नागरिक. यदा कदा उनके व्यर्थ के धन प्रदर्शन का समाचार सुनने को मिल ही जाता है.
इसे एक दुर्भाग्य ही कहें की हमें यह सुनने को नहीं मिलता कि अभी कुछ समय पहले ही यूरोप के कुछ पूंजी पतियों ने यहाँ की सरकारों से यह निवेदन किया था कि उनका आय कर ज्यादा कर दिया जाये ताकि वे आर्थिक संकट से जूझ रहे अपने देश  कि सेवा  कर सकें. हम उससे कुछ शिक्षा ही लेने का प्रयास करें.
हमारे पत्रकार बंधुओं को क्या समाचाओं का इतना अकाल पड़ गया है कि जब तब वे इस प्रकार के समाचारों से देश की गरीब और दुखी मानस को और दुःख देते हैं और उन्हें उनके अपने ही अस्तित्व पर ही प्रश्न मार्क लगाने के लिए विवश करते हैं. साथ ही मैं बड़ी ही विनम्रता से पूछना चाहता हूँ कि क्या इन ख़ास नागरिकों को भारत की गरीबी दिखायी नहीं देती या फिर यह अपनी ऑंखें उस शुतुरमुर्ग की तरह बंद रखते हैं जो सुब कुछ होते हुए भी कुछ देखना नहीं चाहता है?

आंखिर इस संसार में एक मनुष्य को अपने परिवार के साथ रहने के लिए कितना स्थान चाहिए ?
यह  प्रश्न  मैं  आपके  लिए  छोड़े  जाता  हूँ परन्तु याद रहे की एक सादे अनुमान के अनुसार भारत के १२० करोड़ भाईओं, बहनों और बच्चों में से लगभग आज भी ४० प्रतिशत लोग गरीबी में रहने को विवश हैं.

Monday 10 October 2011

तृतीय कक्षा : ०९ अक्टूबर २०११

नमस्ते, अपनी दूसरी और तीसरी कक्षा से हम लोगों ने विधिवत कक्षा शुरू कर दी है. अपनी इस कक्षा की जिम्मेदारी मेरी थे और मैंने कक्षा का प्रारंभ एकात्मता मंत्र के अभ्यास और कक्षा का समापन गायत्री महामंत्र से करवाया.
हिंदी में आज सभी बच्चों ने हिंदी वर्णमाला का मिलकर ऊँची आवाज में उच्चारण किया, फिर दो और तीन वर्णों को मिला कर शब्दों को बनाने का अभ्यास करवाया गया जैसे  जल , फल , कलम , कदम   इत्यादि  अंत में उन शब्दों को मिला कर अपना परिचय करना सिखाया गया.  बच्चों को गृह कार्य एक वाक्य पूरा (अपने परिचय का) लिख कर लाने को कहा गया है जैसे "मेरा नाम अनुराग है" . और हाँ अभिभावकों को गृह कार्य करने में कोई मद्दत नहीं करनी है बल्कि वे केवल बच्चों को गृह कार्य करने हेतु प्रेरित कर सकते हैं. विशेष बात यह रही कि आज बच्चों ने सब मौखिक अभ्यास किया और कुछ भी उन्हें लिखने कि आवश्यकता नहीं थी.  अपनी अगली कक्षा में हम वर्ण, शब्द और वाक्यों का ही मौखिक अभ्यास करेंगे.
और आज की सूचना में बच्चों से पूछा गया है कि वे अपने अभिभावकों से अनुमति ले कर आये यदि वे दीपावली उत्सव में भाग लेना चाहते हैं. आपकी जानकारी के लिए अपनी हिंदी कक्षा इस बार दीपावली पर कुछ कार्यक्रम में भाग लेने की सोच रही है सब कुछ निर्भर करेगे अभिभावक बच्चों को कितना प्रोत्साहित करते हैं..
अपनी अगली कक्षा की जिम्मेदारी नीता जी की है और आशा है बच्चों इन कक्षाओं का आनंद ले रहे होंगे. कृपया अपने सुझाव देते रहें. धन्यवाद

Sunday 25 September 2011

प्रथम हिंदी कक्षा - शीत कालीन सत्र २०११

स्कूल्स में गर्मी की छुट्टियों की समाप्ति के साथ ही आज से हिंदी कक्षाएं पुनः शुरू हो गयीं. इस वर्ष अपनी इस कक्षा में हम लोग एक नया मंत्र 'एकात्मता मंत्र' सीखेंगे. और इसे एक प्रार्थना की तरह हर कक्षा के शुरू में अभ्यास करेंगे. मैं यहाँ पर , इस ब्लॉग पर, मंत्र और उसका अर्थ भी लिख रहा हूँ, यदि आप चाहें तो इसकी एक कॉपी प्रिंट कर सकते हैं.

यह सत्र लगभग दिसम्बर में क्रिसमस अथवा जनवरी प्रथम सप्ताह तक चलने का अनुमान है. अपने इस नए सत्र में हम उसी समय सारणी का अनुसरण करेंगे जो हमने अपने ब्लॉग में पहले प्रकाशित कर रखा है [प्रथम और दूसरी कक्षा : २०११ फरवरी माह (प्राथमिक-परिचय समय सारणी) ]. उसके अनुसार आज और अगले सप्ताह हम पुनः अभ्यास करेंगे और देखेंगे की बच्चों को कितना आता है ताकि आगे की कक्षाओं का विषय विस्तार तय कर सकें. इस सत्र में हम लोग बोल चाल की हिंदी भाषा पर ध्यान देंगे और कोशिश करेंगे की बच्चे हिंदी बोलने में संकोच न करें.

आज हमारी एक सहयोगी अध्यापिका रीता जी ने बच्चों को बड़े ही सुन्दर ढंग से हिंदी वर्णमाला के अक्षरों, रंग, विभिन्न पशु पक्षियों के बारे में पूर्ण अभ्यास कराया. शरीर के विभिन्न अंगों पर बना एक सुन्दर गीत भी बच्चों ने सुनाया. मैंने एकता मंत्र का बच्चों को अभ्यास कराया. इसी के साथ बच्चों ने गायत्री मन्त्र का भी उत्तम उच्चारण किया.बच्चों की संख्या लगभग १३ हो गयी थी.

बच्चों के अभ्यास को देखकर लगा की बच्चों ने कुछ तो सीखा ही है और वे हिंदी का उच्चारण करने में बहुत उत्साहित हैं. परन्तु अभी उन्हें बहुत कुछ सीखना है जिससे उनमे हिंदी के प्रति आत्म विश्वास आ सके और वे और अच्छी तरह से हिंदी में वार्तालाप कर सकें. परन्तु यह कार्य तो हम शिक्षक गणों का है और मुझे पूरा विश्वास है हम सभी अभिभावकों सहित यदि मिल कर प्रयास करेंगे तो यह बहुत कठिन कार्य नहीं है.

अपने अगले सत्र में पुनः एकता मंत्र के बाद हम लोग अभ्यास करेंगे और यथा संभव उसके बाद नए विषयों पर चर्चा शुरू करेंगे. बच्चों से घर पर हिंदी में वार्ता लाप करते रहें. याद रहे आपका यह प्रयास आपके बच्चों के लाभ के लिए है. कक्षा पर हमारा अगला अपडेट शीघ्र ही उपलब्ध होगा परन्तु यदि आप हमसे संपर्क करना चाहें तो आप ईमेल (bvmcardiff@yahoo.com) करें.
सारांश में हिंदी वर्ण माला ...............
    स्वर
              अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, अं, अ:
    व्यंजन
              क, ख, ग, घ, ड़         (कवर्ग)
              च, छ, ज, झ, ञ        (चवर्ग )
              ट, ठ, ड, ढ, ण         (टवर्ग )
              त, थ, द, ध, न        (तवर्ग )
              प, फ, ब, भ, म        (पवर्ग )
              य, र, ल, व       
              श, ष, स, ह
              क्ष, त्र, ज्ञ 

अभ्यास हेतु इन्टरनेट की उपयोगी वेबसाइट
    http://www.hindigym .com, http://indif.com
    http://www.hindilearner.com/hindi_resources.php
    http://www.geeta-kavita.com/ और
    http://www.shabdkosh.com 


Friday 26 August 2011

हिंदी भाषा का इतिहास - IX : हिंदी भाषा का अंतर राष्ट्रीय परिपेक्ष

भोगौलिक दृष्टीकोण से हिंदी बोलने वाले सारे विश्व में मिलते हैं और इसीलिए ४ वर्ष में एक बार विश्व हिंदी सम्मेलन होता है. अभी तक हुए हिंदी सम्मेलन विश्व के अनेक शहरों जैसे नागपुर, दिल्ली, पोर्ट लोइस (मौरिशियस), लन्दन, सूरीनाम इत्यादि में हो चुके हैं. इसकी महत्ता को पहचानते हुए ही तो यूनाइटेड नेशन ने आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन अपने न्यूयोर्क ऑफिस में २००७ में करवाया था.
                    मेरा ऐसा मानना है कि इस परंपरा का लाभ उठा कर हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक और कार्य चालन की भाषा बनाने के लिए भारत सरकार को कदम उठाना चाहिए. भारत में अंग्रेजी का जो वर्चस्व है उसके कारण विश्व में भ्रान्ति है कि भारत को समझने के लिए  भारतीय भाषाओँ को समझना जरूरी नहीं है. यह भ्रान्ति दूर कि जानी चाहिए और शिक्षा, शासन और दैनिक व्यवहार में भारतीय भाषाओँ का अधिकाधिक प्रयोग होना चाहिए. वैसे संयुक्त राष्ट्र कि संस्थाओं में हिंदी का प्रवेश हो चुका है. यह यूनेस्को की एक अधिकारिक भाषा है.
                     हिंदी का विश्व व्यापी प्रचार और प्रसार आकस्मिक अथवा अप्रत्याशित नहीं हुआ है. इसका बहुत बड़ा श्रेय उन प्रवासी भारतीयों को हैं जिन्होंने अपनी हिंदी भाषा को संरक्षण प्रदान दिया. हम उन धरम गुरुओं और प्रचारकों को भी नहीं भुला सकते जिन्होंने हिंदी के माध्यम से अपने अपने मतों का प्रचार किया. इसी प्रकार उन व्यवसाईओं-व्यापारियों कि हिंदी सेवा का मूल्य भी हम शायद कभी आंक नहीं सकते हैं जिन्होंने व्यवसाय और व्यापार का माध्यम हिंदी को ही बनाये रखा.
                  विदेशों में स्थित भारतीयों के अतिरिक्त अनेक विदेशी विद्द्वानों ने भी हिंदी कि लोग संगत मर्यादा और महत्व को जान और पहचान लिया है. सन १६५५ में एडवर्ड टेरी ने अपनी पुस्तक "वोइस टु द इस्ट इन्डीस" में "हिन्दोस्तानी" को भारतीय बोलचाल की भाषा बताया है. सन १७०४ में तुरोनेसिस ने "लेक्सिकन लिंगुआ हिन्दोस्तानिका" नामक कृति प्रस्तुत की. ए हमिल्तन ने सन १७२७ में हिन्दुस्तानी को अपने एक यात्रा विवरण मुग़ल सुल्तान की एक सामान्य भाषा सूचित किया है. सन १८५२ में फ्रांस मैं दिए गए अपने एक भाषण में गार्सा-द-तासी ने 'हिन्दुई-हिन्दुस्तानी' को भारतीय लोकभाषा ठहराया था. इसी प्रकार सन १८८६ में लन्दन में प्रकाशित 'हाब्शन - जाब्शन' कोष में हिन्दुस्तानी (हिंदी) को भारतीयों की राष्ट्र भाषा स्वीकार किया गया है. इससे यह स्पष्ट हो जाता है की विदेशी विद्वान भी हिंदी की वास्तविक स्थिती से परिचित होकर हिंदी सीखने के इच्छुक भी थे. अनेकों विदेशी राष्ट्रों में वहां के विद्वानों ने हिंदी सीखने और सीखाने की दिशा में काफी उत्साह दिखाया है.
                       विदेशों में हिंदी-प्रचार प्रसार हेतु भारत सरकार की ओर से भी प्रयत्न होते रहे हैं. दुनिया के कई देशों में भारत सरकार ने दूतावासों में  हिंदी अधिकारी की नियुक्ति की है. इन हिंदी अधिकारिओं की सहायता से वहां हिंदी के लेखन, हिंदी समाचार पत्रों के संपादन ओर प्रकाशन, रेडियो, दूर दर्शन के प्रसारण ओर हिंदी दिवस पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. ओर इनके आयोजन में इन हिंदी अधिकारिओं का भरपूर सहयोग रहता है. इस सन्दर्भ में उलेखनीय है की मौरिसिअस की भाषा त्रिऔल है जिसमे अनेकों भारतीय भाषाओँ के शब्द सम्मिलित हैं. इसी प्रकार फिजी में संसद के अन्दर सदस्य फीजियन या फिर हिन्दुस्तानी में बोल सकता है. और वहां हिंदी की बहुत सी पत्रिकाओं का भी प्रकाशन होता है जिनमे 'फिजी समाचार', 'शांति दूत', 'जाग्रति', जय फिजी, और सन्देश प्रमुख हैं. बर्मा के रंगून में ब्राह्मण सभा का ऊँचा भवन 'ब्रह्म निकेतन' बर्मा के हिंदी प्रसार के इतिहास का साक्षी रहा है. बर्मा के सभी जिलों में हिंदी पढ़ाने वाले स्कूल हैं. दक्षिण अफ्रीका में शादी व्याह और धार्मिक उत्सवों के समय ख़ास तौर पैर डरबन जैसे शहर में  तो जैसे हिंदी भजनों और संगीत की जैसे धूम सी मच जाती है.जापान में तो १९११ से 'टोक्यो स्कूल फॉर फ़ोरेंन लैंगवेजेस' में हिन्दोस्तानी की पढाई होती है.प्रेमचंद का गोदान, पन्त का स्वर्णकिरण इत्यादि तो जापानी भाषा में अनुदित हो चूका है. सोविएत पाठक तो हिंदी के सभी प्रमुख साहित्य कारों से सुपरिचित हैं. कबीर, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, प्रेमचंद, यशपाल, जैनेन्द्र कुमार, भगवती चरण वर्मा, अमृत लाल नगर, उपेन्द्र नाथ अश्क, इलाचंद्र जोशी, जयशंकर प्रशाद, निराला, सुमित्रा नंदन पन्त, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, राम धारी सिंह दिनकर, केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, धरम वीर भारती इत्यादि हिंदी साहित्यकार तो सोविएत रूस में बहुत ही लोक प्रिय हैं. इनकी रचनाओ का तो अनुवाद भी हो चूका है.अमेरिका में लगभग ३०-३५ विश्व विद्यालओं में हिंदी के पठन और पाठन की व्यवस्था है. ब्रिटेन में हिंदी प्रसार भारती नामक संस्था हिंदी के प्रचार और प्रस्सर में संलग्न है. यह संस्था हिंदी की कक्षाएं नियमित रूप से चलती है और साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन करती है. 'प्रवासिनी' नामक एक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन भी इस संस्था के द्वारा होता है. उपर्युक्त देशों के अतिरिक्त श्री लंका, हालैंड, फ़िलीपीन्स, वियतनाम, डेनमार्क, चीन, इजराइल, हांग कोंग, सूडान, वेस्ट इन्डीस, गुयाना, जैमैका, नेपाल, भूटान इत्यादि देशों में भी हिंदी के पठन और पाठन की उत्तम व्यवस्था हैं.  
                       विश्व के एक विशाल जन समूह की भाषा होने के कारण राष्ट्र संघ की भाषा बन सकती है.  हिंदी किसी भी क्षेत्र में विश्व की अन्य भाषाओँ से पीछे नहीं है बस केवल चाहिए कि हिंदी भाषी लोग और विशेषतः भारत सरकार अपनी इच्छा शक्ति दिखाये और हिंदी को उसका विश्व स्तरीय गौरव दिलाये. और फिर जनसँख्या, सम्रद्धि और अंतर्राष्ट्रीय संपर्क कि दृष्टी से भी हिंदी का स्थान विश्व कि अन्य भाषाओँ कि तुलना में कम महत्वपूर्ण नहीं है.
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सहायक ग्रन्थ सूची :

राष्ट्र भाषा की समस्या - डॉक्टर राम विलास शर्मा
राज भाषा हिंदी - डॉ मालिक मोहम्मद    
भारतीय राष्ट्र भाषा - सीमायें और समस्याएं - डॉ सत्यव्रत
संपर्क भाषा हिंदी - डॉ लक्ष्मी नारायण गुप्त

Thursday 23 June 2011

हिंदी भाषा का इतिहास - VIII : राजभाषा हिंदी का संघर्ष

भारत के संविधान में राजभाषा के रूप में स्वीकृत हो जाने पर भी व्यवहारिक रूप में हिंदी के विकास में बाधाएं आती ही रहीं. हिंदी के प्रश्न को लेकर कुछ राजनैतिक नेता अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए जनमानस में ग़लतफ़हमी पैदा करने में ही अपनी भलाई समझने लगे. इस प्रकार से हिंदी की स्थिती को कमजोर करने में बहुत कुछ इन राजनैतिक शक्तियां प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष से जिम्मेदार जरूर हैं. और हम आज भी देख सकते हैं की भारत की एकता की दुहाई देकर आज भी हिंदी आन्दोलनों का दमन ही किया जा रहा है और सरकारी-गैर सरकारी कार्यो में अंग्रेजी को ही प्राथमिकता मिल रही है. सबसे दुर्भाग्य की बात तो यह है की आज के भारतीय सरकारी तंत्र के कुछ केंद्र बिंदु तो स्वयं ही हिंदी बोल पाने में पूरी तरह से असमर्थ हैं.भारत की यह स्थिती निश्चित रूप से अंतररास्ट्रीय मंच पर तो जरूर भाषा की भ्रामक स्थिती बनाये हुए है.
१९५६ में प्रदेशों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर करना शायद गलत ही था क्योंकि उसने राजभाषा और क्षेत्रीय भाषाओँ को प्रतिद्वंदियों जैसा बना दिया और दोनों में सहयोग के स्थान पर टकराव की सी स्थिती बन गयी जो आज भी आसानी से देखी जा सकती है. इससे व्यापक राष्ट्रीय भावना के बदले क्षेत्रीय भाषायों को ज्यादा बढ़ावा मिला और इससे स्वार्थी तत्वों ने इसे और भी मुखरित किया. जब १९६७ में हिंदी राजभाषा विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था तो अहिन्दी भाषी राज्यों में बड़ी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी. सबसे पुरजोर विरोध के स्वर तो तमिलनाडु प्रदेश से आये. उस समय तमिल भाषा को दोयम दर्जे की भाषा बन जाने के खतरों का प्रचार करने वालों की केवल यह एक राजनेतिक साजिश ही थी. परिणाम स्वरुप न तो इस आन्दोलन से हिंदी भाषा और न ही तमिल भाषा का ही कुछ भला हुआ वरन हमारी इन दोनों भाषाओँ के टकराव की स्थिती में एक विदेशी भाषा को हम पर थोप दिया गया जिसने आज तक हमारी राज भाषा के साथ-साथ सभी क्षेत्रीय भाषाओँ को दोयम दर्जे का बना रखा है.
सामान्य रूप से हिंदी का विरोध करने वाले अधिकांशत: और अंग्रेजी का समर्थन करने वाले लोगों का तर्क है की हिंदी अभी निर्माणावस्था में है और इसमें वैज्ञानिक साहित्य नाम मात्र को है. परन्तु यह सत्य नहीं है क्योंकि हिंदी में पारिभाषिक और वैज्ञानिक शब्दों के अभाव की पूर्ती हो रही है. यह अभाव हिंदी या भारत की किसी अन्य भाषाओँ की अन्तर्निहित स्वाभाविक निर्बलता के कारण नहीं अपितु अंग्रेजी के अनुचित तनाव से उत्पन्न हुआ है. चूंकि हिंदी में वैज्ञानिक साहित्य की मांग नहीं हुई, इसलिए वैज्ञानिक साहित्य का निर्माण नहीं हुआ. अब यह मांग होने लगी है और हिंदी में वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और बोध्धिक साहित्य का बड़ी प्रबलता से निर्माण हो रहा है. हिंदी का किसी भी युग का साहित्य किसी दूसरी भाषा के किसी भी युग के साहित्य से किसी भी अंश में हीन नहीं है. इसका प्रमाण एक हज़ार वर्षों का हिंदी साहित्य है. 
मैं ऐसा समझाता हूँ हमारा प्रयास यह होना चाहिए की हमारी राजभाषा और क्षेत्रीय भाषाएँ सहचरी बन कर रहें न की प्रतिद्वंदी और राज भाषा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उचित स्थान दिलाकर भारत के प्रति राष्ट्रीय भावना का संचार करें. साथ में विदेशी भाषा का तो निसंदेह केवल न्यूनतम अंतरराष्ट्रीय उपयोग करना होगा 

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सहायक ग्रन्थ सूची :

हिंदी का राजभाषा के रूप में विकास - डॉक्टर शिवराज शर्मा
राज भाषा हिंदी - डॉ मालिक मोहम्मद


Sunday 17 April 2011

हिंदी भाषा का इतिहास - VII : आजादी के बाद हिंदी भाषा

स्वाधीनता के आज ६२ वर्ष होने के बाद भी आज तक हम राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त की यह पंक्तियाँ साकार नहीं कर पाए.....
            है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी
            हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी

अपने महापुरुषों और पूर्वजों के इन सपनों को हम आज तक साकार नहीं कर पाए हैं और हमारी राज भाषा हिंदी आज भी एक विदेशी भाषा अंग्रेजी से अपने वर्चस्व के लिए लड़ रही है.यह शायद इस लिए भी हुआ क्योंकि आजादी के बाद जब राजभाषा के रूप में हिंदी का मामला आया तब सदस्यों में राजभाषा के नामकरण  "हिंदी" और "हिन्दुस्तानी" को लेकर गंभीर विवाद था. हिंदी को "हिन्दुस्तानी" बनाने  में गाँधी जी भी भूमिका रही, ऐसा प्रतीत होता है क्योंकि शायद साम्प्रदायीकता के प्रश्न में उन्होंने भाषा जो भी शामिल कर लिया था. जैसे "हिन्दुस्तानी" भाषा "हिंदी" और "उर्दू" भाषा का मिस्त्रण मात्र है. जैसा मैं पहले भी लिख चूका हूँ कि विद्वानों ने उर्दू भाषा को केवल हिंदी में फारसी लिपि का प्रयोग मात्र माना है. भाषा के नामकरण को लेकर शायद यह असमंजस कि स्थिती आज तक बनी हुई है. और आजतक कोई भी तथाकथित भारत की लोकतान्त्रिक सरकारें द्वारा इस धार्मिक-साहित्यिक विषय को सुलझाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ. परिणाम, आज तक हम अपनी राज भाषा और राष्ट्र भाषा के लिए चर्चा और संघर्ष कर रहे हैं.

वैसे भारत के संविधान में हिंदी की स्थिति इस प्रकार है....
विधान के अनुच्छेद ३४३(१) में साफ़ तौर पर यह  निर्दिष्ट है कि संघ कि राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी. संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा. साथ ही यह भी कहा गया है कि उपयुक्त व्यवस्था बनाने तक अर्थात पंद्रह वर्ष कि अवधि तक अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा.
अनुच्छेद ३४३(२) में किसी बात के होते हुए भी संसद उक्त पंद्रह वर्ष कि कालावधि के पश्चात विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा का, अथवा, अंकों के देवनागरी रूप का, ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग अनुबंधित कर सकेगी जैसे कि ऐसी विधि में उल्लेखित हो.
अनुच्छेद ३४४ में राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति गठित करने का निर्देश दिया गया। प्रयोजन यह था कि संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग हो, संघ और राज्यों के बीच राजभाषा का प्रयोग बढ़े, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेज़ी भाषा के प्रयोग को सीमित या समाप्त किया जाए।
विधान के अनुच्छेद ३५० में निर्दिष्ट है कि किसी शिकायत के निवारण के लिए प्रत्येक व्यक्ति संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को संघ में या राज्य में प्रयोग होनेवाली किसी भाषा में प्रतिवेदन देने का अधिकार होगा।
१९५६ में अनुच्छेद ३५० क संविधान में अंतःस्थापित हुआ और यह निर्दिष्ट हुआ कि प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास किया जाए।
हिंदी भाषा के विकास के लिए यह विशेष निर्देश अनुच्छेद ३५१ में दिया गया कि संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके एवं उसका शब्द भंडार समृद्ध और संवर्धित हो।

ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त डॉ. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी अपने एक लेख में लिखते हैं
"भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। वे भाषाएँ भारतीय स्वाधीनता के अभियान और आंदोलन को व्यापक जनाधार देते हुए लोकतंत्र की इस आधारभूत अवधारणा को संपुष्ट करतीं रहीं कि जब आज़ादी आएगी तो लोक-व्यवहार और राजकाज में भारतीय भाषाओं का प्रयोग होगा।"

महात्मा गांधी ने भागलपुर में महामना पंडित मनमोहन मालवीय का हिंदी भाषण सुनकर अनुपम काव्यात्मक शब्दों में कहा था, ''पंडित जी का अंग्रेज़ी भाषण चाँदी की तरह चमकता हुआ कहा जाता है, किंतु उनका हिंदी भाषण इस तरह चमका है - जैसे मानसरोवर से निकलती हुई गंगा का प्रवाह सूर्य की किरणों से सोने की तरह चमकता है।'' आज भी हमारे समय में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी का प्रत्येक भाषण भी इसी प्रकार सूर्य की किरणों से सोने की तरह चमकता हुआ गंगा के प्रवाह की तरह लगता है। फिर भी कुछ बात है की हम अपनी राज भाषा के प्रति या तो उदासीन हैं और या फिर हमें उदासीन बनाये रखा जा रहा है.

अत: हमें जागना होगा और देश प्रेम के साथ भाषा प्रेम को भी अपने परिचय का आधार बनाना ही होगा. वह भाषा चाहे हिंदी के सहचरी के भांति क्षेत्रीय भाषाएँ ही क्यों न हो परुन्तु हमें अपने मानसिक दासता के प्रतीक एक विदेशी भाषा के विरोध में स्वयं को और अपने बच्चों को जागरूक बनाना होगा. हमें याद करना होगा भारतेंदु जी का यह कथन .......
                   ''निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।''

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सहायक ग्रन्थ सूची :

हिंदी का राजभाषा के रूप में विकास - डॉक्टर शिवराज शर्मा
राज भाषा हिंदी - डॉ मालिक मोहम्मद

इन्टरनेट :
http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/hindi_diwas/samvidhan_me_hindi.htm (20-March-2011)

Monday 7 March 2011

दिनांक ०६-०३-२०११

हिंदी-ब्लॉग परिवर्तन - मार्च 2011 
कुछ समय से मुझे ऐसा लग रहा था कि यह ब्लॉग बड़ा ही एकाकी और उबाऊ सा हो रहा है क्योंकि रोजाना कक्षा के बारे में सामान्य गतिविधियों को लिख लिख कर लेखों में नवीनता सी नहीं आ रही थी.  इसका एक कारण यह भी है कि साल २०१० के लेखों में भी कक्षाओं का विवरण उपलब्ध है और कक्षा का स्वरुप अथवा समय सारणी कैसी हो यह हम साल २०११ के प्रथम और दूसरे कक्षा विवरण से (गैर व्यावसायिक उपयोगों के लिए) प्राप्त कर सकते हैं. अब नित्य यहाँ पर हम कक्षाओं का विवरण नहीं देंगे वरन इस ब्लॉग का उपयोग हिंदी के प्रचार और प्रसार और हिंदी पर चर्चा करने में लगाया जायेगा. 
फिर भी यदि ऐसा लगा कि कक्षा में यदि कुछ भी उल्लेख करने योग्य हुआ तो उससे हम अपने इस ब्लॉग में स्थान जरूर देंगे. इसके अतिरिक्त आपके सुझाव पर भी हम जरूर टिप्पणी करेंगे. हम देव भाषा संस्कृत की भी यहाँ पर चर्चा करेंगे.
                   इस प्रकार से यह ब्लॉग कुछ संवादात्मक (इन्टरैक्टिव) और जीवंत सा भी लगेगा.कुछ विचार विमर्श और सुझाव के आधार पर इस ब्लॉग का नाम "राजभाषा हिंदी २०१०" बदला गया है.आपको नियमित साप्ताहिक लेख शायद न मिले परन्तु लेखों की आवृत्ति निरंतर बनी रहेगी. अपने इस परिवर्तन का  स्वागत हम हिंदी के हास्य कवि श्री ऋषि गौढ़ जी द्वारा रचित हास्य कविता के साथ करते हैं . यह संस्कृत में  अनुवादित है........

"आधुनिक विद्यार्थी:
एकलव्य: भांति
ना ददाति अन्गुठम कर्तिरित्वंम
समर्पियतम गुरु: दक्षिणाम:
अन्गुठम प्रदर्शयम:"

कृपया अपने सुझाव और विचार हम तक भेजते रहें.
धन्यवाद

Tuesday 22 February 2011

चौथी कक्षा : २० फ़रवरी २०११

आज की प्राथमिक कक्षा में मुख्यतः कपिल जी की जिम्मेदारी थी और रवि जी सहायक की भूमिका में थे. कक्षा में उन्होंने स्वरों का बच्चों को अभ्यास कराया. कुछ बच्चे तो अच्छी गति से सीख रहे हैं मगर जो बच्चे इस साल नए हैं उनके लिए थोडा समय लग रहा है मगर रवि जी और कपिल जी दोनों का ही यह विशवास है की वे आपेक्षित गति से जल्दी ही भाषा सीख लेंगे. अगले सप्ताह स्वर-व्यंजनों के उच्चारण और लेखन का अभ्यास जारी रख्खा जायेगा.
परिचय कक्षा की जिम्मेदारी मेरी थी और बच्चों ने आज मात्राओं का और अभ्यास किया और साथ में कुछ रंगों का हिंदी में उच्चारण किया. बच्चे अब कक्षा में हिंदी में बात करते हैं. इसलिए यह महत्वपूर्ण है की यदि आप भी घर पर बच्चों से हिंदी में बात करें और उन्हें प्रोत्साहित करें तो उनका हिंदी ज्ञान और बढेगा और वे कक्षा में और अधिक उत्साही हो कर आयेंगे. परिचय कक्षा में ग्रह कार्य के लिए एक फोटो रंग करने के लिए दी गयी है और साथ में बच्चों को कुछ नए रंगों को ढून्ढ कर लाना है. आज कक्षा में बच्चों से बताया गया की अगली कक्षा से वे एक नोट पैड या फिर रजिस्टर भी लायें उसपर बच्चे हिंदी लेखन का अभ्यास करेंगे.अगली परिचय कक्षा में हम लोग १ से १०० तक नंबर और कुछ हिंदी के वाक्य बनायेंगे.
                    आज के सत्र का समापन बड़ा ही अव्यवस्थित रहा. इस अव्यवस्था से यदि आपको कोई भी असुविधा हुई हो तो हम क्षमा प्रार्थी है. अगले सप्ताहांत मैं कुछ निजी काम से नगर से बाहर हूँ और मैं कक्षा नहीं ले सकूँगा. परन्तु अन्य स्वयंसेवक और स्वयंसेविकाएं परिचय कक्षा का सञ्चालन करेंगे. प्राथमिक कक्षा की जिम्मदारी रवि जी की है और आशा है हमारी हिंदी कक्षा सुचारू रूप से संम्पन्न होगी. कृपया अपने सुझाव हमें भेजते रहें 
धन्यवाद

Tuesday 15 February 2011

तीसरी कक्षा - २०११

आज प्राथमिक कक्षा में कुछ और स्वरों के लिखने और उच्चारण का अभ्यास कराया. आज प्राथमिक कक्षा की मुख्य जिम्मेदारी रवि जी की थी. परन्तु आज कपिल जी भी आ गए थे तो कपिल जी ने कक्षा में सहायक की  भूमिका निभाई. गृह कार्य हेतु बच्चों को स्वरों का घर पर अभ्यास करने को कहा गया है. अगली कक्षा में स्वरों और व्यंजनों के अभ्यास को आगे ले जाया जायेगा.

परिचय कक्षा में आज हम लोगों ने बच्चों के मात्रा ज्ञान का अनुमान लगाया. हिंदी भाषा में मात्रा का ज्ञान होना बहुत आवशक है क्योंकि सभी वाक्यों को लिखने में हमें मात्राओं का ज्ञान तो होना ही चाहिए.  परिचय कक्षा की जिम्मेदारी मेरी थी.  परिचय कक्षा में बच्चों को मात्राओं का अच्छा गृह कार्य दिया गया और अभिभावकों से  अपेक्षा है की वे बच्चों को उनके गृह कार्य में प्रोत्साहित करेंगे. अगले सप्ताहांत हम लोग इन्ही मात्राओं के लेखन का अभ्यास करेंगे इसलिए यह बहुत जरूरी है कि बच्चे अपना गृह कार्य कर के आयें. साथ में हिंदी में विभिन्न रंगों का बच्चों को परिचय कराएँगे

उषा जी हमेशा की तरह सभी कक्षाओं में अतिरिक्त सहायक के रूप में अपनी जिम्मेदारिओं का निर्वहन कर रहीं थी. तो इस प्रकार आज कक्षा में हम सभी सहयोगी उपस्थित थे. अपनी कक्षा का समापन हमेशा की तरह कुछ खेल, योगासन और फिर गायत्री महामंत्र के साथ हुआ. अगली कक्षा में कपिल जी प्राथमिक कक्षा के मुख्य शिक्षक हैं और मैं परिचय कक्षा हेतु. आज की कक्षा में बच्चों की भी संख्या लगभग १८ हो गयी थी. बहुत अच्छा रहा .

आशा है आप लोगों को कक्षा के समय सारणी से लाभ मिल रहा होगा और आप इस ब्लॉग की मदद्दत से कक्षा के अन्दर का हाल समझ पा रहे होंगे. आपसे इतना ही अनुरोध है की आप भी हम सभी के साथ मिलकर अपने बच्चों के हिंदी अध्धन में मद्दत करें उनको घर में प्रेरित करके और स्वयं भी बच्चों से हिंदी में बोल के और उन्हें प्रेरित करें.

आज हिंदी की दोनों ही कक्षाओं में प्रवेश लेने का अंतिम दिन था. अत: आज के बाद अब नए प्रवेश नहीं लिए जायेंगे. नए प्रवेश पत्र अब अगस्त माह में खुलेंगे और नए बच्चों को उसमे प्रवेश मिल सकेगा. कुछ बच्ची अगस्त में प्राथमिक से परिचय कक्षा में प्रवेश पाएंगे. इसलिए बच्चों के साथ मेहनत करते रहिये अगर आपको लगता है कि हमारे बच्चों को हिंदी आनी ही चाहिए. और हमारा भी मार्ग दर्शन करते रहिये अपने सुझाव और आपेक्षाएं भेज कर.

अंत में, हम लोग अभी भी सूर्यनमस्कार योगासन से सम्बंधित सूचना के लिए आपके जवाब की प्रतीक्षा मैं हैं. हम लोगों को अभी तक केवल ३ उत्तर आयें हैं. यदि आप इच्छुक है कि आपका बच्चा अपनी हिंदी कक्षा के बाद खेल कूद और योगासन में भाग ले तो कृपया एनरोलमेंट एंड सूचना पत्र में हस्ताक्षर कर के भेज दें.
धन्यवाद

Wednesday 9 February 2011

दूसरी कक्षा : २०११

इस सप्ताहांत दिनांक ०६ फ़रवरी २०११ को हमारी दूसरी हिंदी की कक्षा हुई. ८ फरवरी को बसंत पंचमी उत्सव होने की वजह से कक्षा का आरम्भ सरस्वती वंदना के साथ किया गया. सभी बच्चों ने "...या कुंदेंदु तुषार हार धवला ......." प्रार्थना की पहली कुछ पंक्तियाँ मिलकर गाई गयीं. बच्चों को इस प्रार्थना की एक प्रिंटेड कॉपी भी दी गयी. ताकि वे घर पर भी अभ्यास करें. बच्चों को इस उत्सव का महत्त्व भी बताया गया.

इसके साथ ही बच्चों को उनके अभिभावकों के लिए दो सूचना पत्र भी दिए गए. एक तो एनरोलमेंट फॉर्म है और दूसरा हिंदी कक्षा के बाद ३० मिनट का सभी को, बच्चों सहित, सूर्यनमस्कार और अन्य योगासनों के अभ्यास का आमंत्रण है.

एक और जरूरी बात अभिभावकों के लिए/ कि आगामी ६ फरवरी "प्रारंभिक हिंदी कक्षा" में एन्रोलेमेंट की अंतिम तारिख है और अगली यानी १३ फरवरी "परिचय हिंदी कक्षा" में प्रवेश की अंतिम तारिख है. उसके बाद हम बच्चों को अगले सत्र यानि अगस्त - सितेम्बर २०११ माह के लिए ही प्रवेश देंगे.

इसके अतिरिक साथ मैं आज से हमारे एक और सहयोगी कपिल जी ने बच्चों को पढ़ाने की शुरूवात की. वे प्रार्थमिक कक्षा हेतु रवि जी का मुख्य रूप से साथ देंगे.

इस प्रकार आज पहली बार दो कक्षाएं लगाई गयीं "प्राथमिक" और "परिचय". "हिंदी - प्रार्थमिक" कक्षा की जिम्मेदारी कपिल जी पर और दूसरी कक्षा "हिंदी - परिचय" की जिम्मेदारी मेरी थे. रवि जी आज व्यक्तिगत कारणों से नहीं आ सके और उषा जी हमेशा की तरह हम सभी के साथ मिल कर अपनी जिम्मेदारिओं का निर्वहन कर रही थीं. 

प्राथमिक कक्षा में स्वर और व्यंजन के उच्चारण और लेखन का अभ्यास किया गया और कपिल जी ने उषा जी की सहायता से सभी बच्चों को स्वरों का गा कर अच्छा अभ्यास करवाया. अगले सप्ताह से प्राथमिक कक्षा में व्यंजन पढाये जायेंगे और उन्हें लिखने का अभ्यास कराया जायेगा.

परिचय कक्षा में , जैसा की तय था,  बच्चों के उनके प्राथमिक हिंदी ज्ञान का अनुमान लगाया गया. उन्हें स्वरों और व्यंजनों को लिख कर और उच्चारित कर के सभी को सुनाना था और जैसा अनुमान था कि सभी बच्चों ने बहुत ही सुन्दर उच्चारण किया और लगभग १० मिनेट में सभी स्वरों और व्यंजनों का लिख लिया. यह बहुत ही अच्छी बात है और उनके इस कार्य-निष्पादन से मुझे पूरा विश्वास है कि परिचय कक्षा के बच्चों को अडवांस हिंदी में कोई दिक्कत नहीं होगी. अगले सप्ताहांत फिर से उनके मात्राओं के ज्ञान का अनुमान लगाया जायेगा. और यदि सुब अच्छा रहा, जैसा कि रहेगा ही, तो एक नए विषय "हिंदी में रंगों के उच्चारण और लेखन" का अभ्यास करवाया जायेगा.

प्रारंभिक कक्षा में बच्चों कि संख्या १६ थी तो परिचय कक्षा में ८ बच्चे थे.अभिभावकों से अनुरोध है की वे पेन या पेंसिल और अन्य जरूरी स्टैशनेरी उनके बच्चों के बैग में रख दें ताकि वे कक्षा में आत्म विश्वास से पूर्ण रहें

आज परिचय कक्षा की समय सारणी प्रस्तुत है सभी के अवलोकन हेतु . अभिभावकों से अपेक्षा है कि वे इस समय सारणी के अनुसार बच्चों के साथ घर पर हिंदी भाषा का अभ्यास करें.

हम इस ब्लॉग को अर्थ पूर्ण बनाने के लिए अभिभावकों के सुझाव और आपेक्षाओं का स्वागत करते हैं और हमें आशा है कि वे इस ब्लॉग को अर्थपूर्ण बनाने में सहयोग करेंगे. यदि आपको इस ब्लॉग पर कोई सलाह या सुझाव देना है तो आप ईमेल भी कर सकते हैं. हमारा ईमेल है "bvmcardiff@yahoo.com"

सत्र के समापन पर हम लोगों ने बच्चों के साथ कुछ खेल खेले और उनको योगासन जैसे सूर्यनमस्कार आसन का अभ्यास करवाया. बच्चों ने बड़े ही चाव से उसमे हिस्सा लिया. ३० मिनट के खेल के बाद हमारी हिंदी कक्षा समाप्त हो गयी.


Monday 31 January 2011

प्रथम कक्षा २०११

इस सप्ताहांत अपनी हिंदी कक्षाएं विधिवत शुरू हो गयीं. उषा जी और रवि जी ने पहली प्राथमिक कक्षा के साथ इसका शुभारम्भ किया. मैं व्यक्तिगत कारणों से नगर में नहीं था, अत: कक्षा में उपस्थित नहीं रह सका. आज की कक्षा में बच्चों का परिचय हुआ और बच्चों को एक एक कर के स्वरों के उच्चारण का अभ्यास कराया गया. जैसा अनुमान था की हिंदी की पिछली कक्षाओं का बच्चों पर बहुत नहीं तो थोडा थोडा असर जरूर है. थोडा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि स्वरों को लिखने का उन्हें पुनः: अभ्यास करना है यद्यपि स्वरों को बच्चे थोडा थोडा उच्चारित कर पा रहे हैं. और हमेशा की तरह प्रार्थना के साथ कक्षा का समापन हुआ.
              अगले सप्ताहांत हम लोग दो कक्षाओं का सञ्चालन करेंगे, एक प्राथमिक और दूसरी परिचय. परिचय में अभी थोड़े ही बच्चे हैं आशा है वे हिंदी के थोडा एडवांस रुप को पसंद करेंगे. और साथ में हम लोग बसंत पच्चमी के उत्सव पर प्रकाश डालेंगे. वैसे यह उत्सव ८ फ़रवरी को है.
              प्राथमिक कक्षा में स्वरों का अभ्यास जारी रहेगा और परिचय कक्षा में हम पहले बच्चों के हिंदी ज्ञान का अनुमान लगायेंगे और फिर प्राथमिक कक्षा में पढाये गए विषयों का संक्षेप अभ्यास करेंगे. जैसा मैंने पहले भी लिखा था की आज के इस ब्लॉग में हम प्राथमिक कक्षा के विषय सूची को प्रसारित करते हैं.अगले सप्ताह परिचय कक्षा के आरम्भ के साथ ही हम परिचय कक्षा की विषय सूची और समय सारणी प्रस्तुत करेंगे. बच्चे या उनके अभिभावक इसे डाउनलोड कर सकते हैं और तदनुसार अपनी हिंदी की कक्षा में तैंयारी कर के आ सकते हैं.




Tuesday 25 January 2011

हिंदी कक्षाएं - २०११

सबसे पहले आप सभी को अंग्रेजी नव वर्ष २०११ की शुभ कामनाएं.
हम अपने ब्लॉग को आगे बढ़ाते हैं और सबसे पहले अच्छी सूचना, अपनी हिंदी कक्षा के अगले सत्र का कार्यक्रम तैयार हो रहा है..
यदि आपको याद हो तो भारी बर्फ़बारी के कारण हमारे पिछले सत्र का समापन कार्यक्रम स्थगित हो गया था. अत: इस सत्र का आरम्भ हम लोग उसी समापन कार्यक्रम के आयोजन से किया. दिनांक २३ जनवरी दिन रविवार को यह कार्यक्रम था और आवश्यक सूचना अभिभावकों को भेज दी गयी थी. सभी ने बच्चों के साथ बढ चढ़ कर इसमें हिस्सा लिया. पहले बच्चों ने एक छोटा सा हिंदी का नाटक किया, फिर कुछ बच्चों ने अपने अपने वाद्य यन्त्र बजाये जो भी उन्हें आता था. फिर सभी ने मिलकर अमर शहीद नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को याद किया क्योंकि उसी दिन यानि २३ जनवरी को  उनका जन्मदिन भी पड़ता है. अंत में सभी ने मिलकर भारत का राष्ट्र गान गया. कार्यक्रम के समापन के बाद एक दुसरे से भेंट की गयी और साथ में अल्प हार भी किया गया.
              महत्वपूर्ण बात, हम लोग हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ की कक्षाओं के सञ्चालन हेतु शिक्षक और गैर शिक्षक स्वयंसेवकों और स्वयसेविकाओं को आमंत्रित करते हैं की वे भी हमारी टीम को ज्वाइन करें और सब मिलकर बच्चों का मार्ग दर्शन करें. यदि आप इच्छुक हैं तो संपर्क करें ईमेल द्वारा. हमारा ईमेल एड्रेस है "bvmcardiff@yahoo.co.uk" और या इस ब्लॉग में अपना मेसेज दें.
               सभी अभिभावकों को यह सूचना दे दी गयी है की इस वर्ष हम लोग दो हिंदी की कक्षाएं चलाएंगे. एक प्राथमिक और दूसरी परिचय. "प्राथमिक" कक्षा में मूलतः हिंदी की शुरुवात करेंगे और जिन बच्चों को बिलकुल भी हिंदी  नहीं आती है उन्हें इसमें प्रवेश दिया जायेगा. परन्तु यदि बच्चा थोडा सा भी हिंदी के ज्ञान का प्रदर्शन करता है तो हम उससे थोडा आगे बढा कर "परिचय" नामक कक्षा में प्रवेश देंगे.
अभी हम कक्षाओं के सञ्चालन हेतु व्यवस्थाओं में व्यस्त हैं और जल्दी ही आप लोगों को अपने अगले सत्र के पूरे कार्यक्रम से अवगत करेंगे. और साथ में इस ब्लॉग में हम प्राथमिक और परिचय के समय सारणी और विषय सूची भी  अपलोड करेंगे.
तब तक आज्ञा दीजिये. शेष फिर .