Thursday 30 December 2010

हिंदी भाषा का इतिहास - VI : अंग्रेजी राज और हिंदी

अंग्रेजों के शासन की स्थापना के समय प्रमुख भाषाएँ निम्नवत थीं:

१. अंग्रेजी भाषा जो कंपनी की अपनी भाषा थी
२. फ़ारसी जो मुस्लिम शासनकाल से देश की राज भाषा चली आ रही थी.
३. देसी भाषाएँ जो क्षेत्रीय भाषाएँ थीं और जिनमे हिंदी का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण था.

अंग्रेजी चूँकि उनकी अपनी भाषा थी इसलिए वह उसे ही राज भाषा बनाना चाहते थे. अंग्रेजी शासन की स्थापना के बाद कुछ भारतीय नेता भी उसके प्रति विशेष आकर्षित हुए और उसी के द्वारा भारतीयों को शिक्षा प्रदान करने की बात सोचने लगे, क्योंकि उन दिनों आधुनिक ज्ञान और विज्ञान की शिक्षा के लिए अंग्रेजी को ही ज्यादा उपयुक्त समझा जाने लगा था. यह मानसिकता आज़ादी मिलने के बाद भी बनी रही और इसका परिणाम यह हुआ की आज भी हम देश की राष्ट्र भाषा के रूप में हिंदी को भारत के सभी समुदाय और क्षेत्र के लोगों को स्वीकृत नहीं करवा पाए.

अंग्रेजों द्वारा अपनाई गयी भाषा नीति में देवनागरी और फारसी दोनों ही भाषाओँ को स्थान दिया. उन्होंने अपने सिक्कों और स्टाम्पों में फ़ारसी के साथ साथ नागरी लिपि को भी स्थान दिया. यह काफी भ्रामक स्थिति थी क्योंकि फारसी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं थी और नागरी लिपि के स्थान पर उर्दू का प्रचलन बढ़ गया था.
स्वयं अंग्रेज अधिकारी गण इस विचार का प्रतिपादन करते थे. अंग्रेज विद्वान् गौस ने लिखा है 'आजकल की कचहरी की भाषा बड़ी कष्ट दायक है क्योंकि एक तो यह विदेशी है और दूसरे, इसे भारतवासिओं का अधिकाँश भाग नहीं जानता ' (स्वंतंत्रता पूर्व हिंदी के संघर्ष का इतिहास - रामगोपाल पृ 29 )
इस तथ्य से विचार पैदा हुआ की जन साधारण की भाषा हिंदी है न कि फ़ारसी पूरित उर्दू . इसलिए सन १८७० में सरकार ने एक आज्ञा पत्र जारी किया जिसमे कहा गया था कि ऐसी भाषा का उपयोग बढ़ना चाहिए जो एक कुलीन भारतीय फ़ारसी से पूर्णतया अनभिज्ञ रहते हुए भी बोलता है.

यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि हिंदी उर्दू में मूलतः व्याकरण भेद ही है. हिंदी का आधार संस्कृत है और उर्दू के लिए लोग फ़ारसी अरबी की सहायता लेते हैं. कुछ लोगों का तो यह भी मानना है की उर्दू कोई अलग भाषा नहीं है बल्कि वह हिंदी की ही एक साहित्यिक शैली मात्र है. डॉक्टर सुनीति कुमार चतुर्ज्र्या के अनुसार "सोलहवी शती में मुसलमान कविओं के द्वारा हिंदी को जाने या अनजाने फ़ारसी लिपि में लिखने के प्रयत्न में ही इस झगड़े के सूक्ष्म अंकुर निहित थे "  

इसके परिणाम स्वरुप ही हिंदी, उर्दू और हिन्दुस्तानी का वाद विवाद खड़ा हुआ. कंपनी की भाषा नीति का जो दुष्परिणाम निकला उसके बार में डॉक्टर सरनाम सिंह ने ठीक ही लिखा है - "अंग्रेजी शासनकाल की स्थापना से भाषा के क्षेत्र में एक विस्फोटक भावना का प्रजनन हुआ. धर्म की आढ़ में कूटनीतिक चालों को पोषित करने का अवसर लेकर शासकओं ने अपना उल्लू सीधा करने की चेष्टा की. उन्होंने 'हिन्दुस्तानी ' शब्द से एक ऐसे विष का प्रादुर्भाव किया, जो बढता और फैलता गया. हिंदी और उर्दू के सम्बन्ध में उससे एक निश्चित भेद दृष्टी हो गयी."

सूक्ष्म दृष्टी से देखने पर यह आसानी से समझा जा सकता है कि कंपनी भाषा नीति के विषय में सच्ची और ईमानदार नहीं थी. भाषा के क्षेत्र में वो ऐसी भ्रामक स्थिति पैदा करना चाहती थी जिससे सामान्य जनता को कठिनाई हो और उनकी भाषा सम्बन्धी भावनाओं को ठेस पहुंचे. अंग्रेजों ने जिस भाषा नीति को अपनाया और उसका पोषण कंपनी द्वारा स्थापित फोर्ट विल्लिंम कालेज ने किया. फोर्ट विल्लिंम कालेज की स्थापना लोर्ड वेलेजली (१७९८ - १८०५) द्वारा सैनिक और असैनिक कर्मचारिओं के लिए देसी भाषाओँ के अध्धयन के उद्देस्य से की गयी थी. यहाँ जिस भाषा को प्रोत्साहन दिया जाता था वह वस्तुत: 'हिन्दुस्तानी' कहलाती थी. उसमे अरबी-फ़ारसी का बाहुल्य रहता था परन्तु मूल ढांचा देवनागरी हिंदी पर ही आधारित था.
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सहायक ग्रन्थ सूची :

राज भाषा हिंदी - डॉ मालिक मोहम्मद
भारतीय आर्यभाषा और हिंदी - डॉक्टर सुनीति कुमार चतुर्ज्र्या
हिंदी का राजभाषा के रूप में विकास - डॉक्टर शिवराज शर्मा

Monday 20 December 2010

उत्सव अप्डेट

दिनांक १९ दिसम्बर २०१० दिन रविवार : प्रथम सत्र समापन समारोह अप्डेट

ब्रिटेन में भारी बर्फवारी और खराब मौसम के चलते हमारा समापन कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा और संभवत: नए वर्ष में इस कार्यक्रम का पुनः आयोजन किया जायेगा. सभी अभिभावकों को ईमेल के माध्यम से इसकी जानकारी दे दी गयी थी और आशा है कि रविवार दिनांक १९ दिसम्बर को अभिभावकों अथवा बच्चों को किसी भी तरह कि असुविधा नहीं हुई होगी.
            हमारा हिंदी भाषा के इतिहास का मासिक आलेख  बहुत जल्दी इस ब्लॉग पर उपलब्ध होगा और उसके बाद हम अब जनवरी माह में मिलेंगे. तब तक शायद हम अपनी हिंदी कक्षा के अगले सत्र का भी विवरण दे सकेंगे. इसलिए कृपया इस ब्लॉग पर नियमित अपने सुझाव और सदभावनाएँ भेजते रहें. धन्यवाद.

Sunday 12 December 2010

उन्नीसवीं कक्षा

उन्नीसवीं कक्षा - दिनांक १० दिसम्बर २०१० दिन रविवार

जैसा मैंने अपने पिछले ब्लॉग में लिखा था कि मैं तीन हफ़्तों के अवकाश में था और इस दौरान मेरे सहयोगी श्री रवि जी और श्रीमती उषा जी ने सोलहवीं, सत्रहवीं और अठारवीं कक्षाओं की बड़ी ही कुशलता पूर्वक जिम्मेदारी उठाई. इन कक्षाओं में मोटा मोटी हिंदी बोलचाल की भाषा के रूप में बच्चों को अभ्यास कराया गया.
                     आज की यानी उन्नीसवीं कक्षा की जिम्मेदारी मेरी थी और मैंने आज बच्चों के साथ हिंदी में १० तक गिनती का अभ्यास किया. उसके बाद एक छोटी से कविता का बच्चों को अभ्यास करवाया. वह कविता मैंने कभी अपने बचपन में सीखी थे और मेरी हिंदी शिक्षा के शुरू के दिनों से आज तक वैसे ही याद है. कविता है .....

                "मछली जल की रानी है
                जीवन उसका पानी है
                हाथ लगाओगे तो डर जाएगी
                बाहर निकालोगे तो मर जाएगी"

अंत में बच्चों ने अगले सप्ताहांत होने वाले कार्यक्रम का अभ्यास किया और गायत्री महा मंत्र का उच्चारण किया. इस प्रकार हिंदी प्राथमिक कक्षाओं के सत्र का  समापन हुआ और बच्चे अगले सप्ताहांत अपने अभिभावकों के लिए छोटा सा कार्यक्रम प्रस्तुत करके बड़े दिन की छुट्टियों पर चले जायेंगे.
                अगले वर्ष जनवरी माह में आशा है हम पुनः मिलेगे और बच्चों के उनके हिंदी ज्ञान और अभ्यास के आधार पर दो गुटों में बाँट कर हिंदी की दो कक्षाएं चलाएंगे. एक में अपनी इसी कक्षा को यानी "हिंदी प्राथमिक शिक्षा" को पढाया जायेगा और दूसरे गुट को हिंदी की अग्रिम कक्षा यानी "हिंदी परिचय कक्षा" में प्रवेश मिलेगा. इस हिंदी कक्षा के कुछ बच्चे मुझे आशा है की अग्रिम कक्षा में निसंदेह प्रवेश पा सकेंगे परन्तु, मुख्यता छोटी उम्र के बच्चों को पुनः प्राथमिक कक्षा में ही और अभ्यास करना होगा. हमारा प्रयास रहेगा की हम कुल मिला कर तीन कक्षाएं चला सकें, प्राथमिक, परिचय और प्रवीण. इन कक्षाओं में प्रवेश बच्चों की हिंदी ज्ञान और क्षमता के अनुसार ही प्रवेश मिल सकेगे और उसके लिए संभवतः हम प्रवेश से पहले एक छोटा सा टेस्ट भी ले सकते हैं. यह सूचना मैं सभी अभिभावकों के लिए प्रेषित करता हूँ जो अपने बच्चों को हिंदी शिक्षा का ज्ञान दिलवाना चाहते हैं यहाँ कार्दिफ्फ़ शहर में.           
                मैं इस ब्लॉग के माध्यम से उन अभिभावकों को भी विशेष धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन्होंने अपने प्रयास से सभी बच्चों को अगले सप्ताहांत होने वाले कार्यक्रम के लिए तैयार किया. साथ में सभी अध्यापकों, सहायकों और अभिभावकों को हार्दिक धन्यवाद जिनके सहयोग से हिंदी के इस प्राथमिक सत्र का सफलता पूर्वक सञ्चालन हो सका.
धन्यवाद और शेष फिर.

Tuesday 7 December 2010

मेरी छुटियाँ

मेरी छुटियाँ : दिनांक १९ नवम्बर २०१० से ५ दिसम्बर २०१० तक
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जैसा मैंने अपने पिछले ब्लॉग में लिखा था की मैं कुछ सप्ताहांतों के लिए छुट्टियों में जा रहा हूँ. अत: मेरी छुटियाँ समाप्त हुईं और में वापस इस ब्लॉग के माध्यम से आप लोगों के बीच पुनः उपस्थित हूँ. मेरी भारत यात्रा बहुत ही सुखद रही और परिवार, मित्रों और समाज के अन्य वर्ग से लोगों से भी अच्छा संपर्क हो सका. परन्तु मेरी वापस यात्रा के दौरान मुझे जो अनुभव हुआ वह मैं जरूर आप लोगों के जानकारी में लाऊंगा. जैसा की आप लोगों को शायद मालूम ही होगा की नयी दिल्ली हवाई अड्डे पर एक नया टर्मिनल बना है, टर्मिनल तीन, जो पिछले दिनों अपनी आधुनिक सुविधाओं और दिखावटी सुन्दरता के लिए बहुत चर्चा में रहा. अपनी वापस की यात्रा के दौरान मेरा हवाई जहाज़ टर्मिनल तीन से ही जाना था. अत: मैंने भी उसकी भव्यता के दर्शन किये. घूमते घूमते मेरे मन में एक हिंदी की पुस्तक खरीदने की इच्छा हुई जो में यात्रा के दौरान पढ़ सकूँ परन्तु आप को, मेरी ही तरह, यह जानकार आश्चर्य होगा की मुझे पूरे टर्मिनल में कहीं भी हिंदी की पुस्तक या उपन्यास नहीं मिला. फिर मैंने पूरे टर्मिनल का दौरा किया तो पाया की जैसे हम पर परोक्ष रूप से पाश्चात्य सभ्यता थोपी जा रही है और पूरा का पूरा सरकारी तंत्र इसमें जैसे मददत कर रहा हो कि कैसे भी हमारी युवा पीढ़ी जल्दी से जल्दी अपनी सभ्यता और संस्कृति के साथ साथ अपनी भाषा के प्रति भी उदासीन और अज्ञान बनी रहे. वहां पर हिंदी ही नहीं वरन भारत की किसी भी क्षेत्रीय अथवा उप भाषा की भी पुस्तकें उपलब्ध नहीं थें. अंग्रेजी कि तो बहुतायत में पुस्तकें थीं मगर भारतीय राज भाषा या क्षेत्रीय भाषा कि कोई भी पुस्तकें नहीं थीं. मेरी समझ में यह भारतीय भाषाओँ का अपनी ही भूमि और देश  में एक तरह का अपमान है. साथ ही वहां पर मैंने पश्चिम देशो की कंपनियां और उनके उत्पाद देखे मगर लगता था जैसे भारत में भारत की ही चीजें और वस्तुएं गायब हों. मैंने अपनी प्रतिक्रिया टर्मिनल के सूचना केंद्र में बैठे हुए महोदय से भी करवा दी और उन्होंने भी अपनी अनभिज्ञता और असमर्थता दिखाई. यह बहुत ही विचित्र तरह का व्यवसायिक उदारीकरण नहीं तो और क्या है जहाँ गाँधी जी के द्वारा पोषित और अनुमोदित घरेलु उद्योगों को प्राथमिकता और प्रोत्साहन न देकर सिर्फ मुनाफाखोरी के लिए व्यापार करना भर है. 
                         अब मैं यह ब्लॉग १२ दिसम्बर की अपनी हिंदी कक्षा के बाद ही अपडेट करूँगा. वैसे यह प्राथमिक हिंदी शिक्षा की अंतिम कक्षा होगी और इसके बाद हम लोग दिनांक १९ दिसम्बर को , याने उसके अगले रविवार को, एक छोटा सा कार्यक्रम करके इस कक्षा का समापन करेंगे. इस उत्सव में बच्चे राष्ट्रीय गान और एक छोटा सा हिंदी का नाटक करेंगे जिसके सारे संवाद हिंदी में ही होंगे. अत: में आपको अपने विगत दिनों में हुई यात्रा के अनुभव के बारे मैं सोचने के लिए छोड़े जा रहा हूँ और पुनः अगले ब्लॉग में मिलूँगा.

Sunday 14 November 2010

पंद्रहवी कक्षा

पंद्रहवी कक्षा : दिनांक १४ नवम्बर २०१० दिन रविवार

आज की कक्षा में हम लोगों ने पुनः एक बार पिछली कक्षा में पढाया गए वर्णों और व्यंजनों के उच्चारण का पुनाराभ्यास किया. उसके बाद नए व्यंजनों के उच्चारण का भी अभ्यास किया. फिर ३० मिनिट्स के बाद हिंदी के कुछ वाक्यों के बोलने का अभ्यास किया. बच्चे रोमन लिपि में लिखे हुए हिंदी के वाक्यों का सहजता से उच्चारण कर पा रहे हैं. परन्तु रोमन लिपि कि जगह हिंदी में लिखे हुए वाक्यों को हम अपनी अगले सत्र की हिंदी कक्षाओं में सिखायेंगे. तब यह सुगमता पूर्वक समझाया जा सकेगा. बाद में बच्चों को घर पर कुछ अभ्यास करने को कहा गया है. अगली कुछ कक्षाओं में हम अब इन्ही वर्णमाला की वर्णों के उच्चारण का अभ्यास करेंगे और साथ में पहले से दी हुई रोमन लिपि में हिंदी के नए वाक्यों के उच्चारण का अभ्यास करेंगे. हमारा प्रयास है की बच्चे हिंदी कक्षाओं का अगला सत्र हिंदी बोलने से आरम्भ करें और हिंदी में ही बच्चों को वाक्यों के लिखने और पढ़ने हेतु समर्थ कर सकें. इसके पश्चात छोटे से एक ब्रेक के बाद हम सब ने मिल कर बच्चों के साथ कुछ खेल खेले और हमेशा की तरह गायत्री महा मंत्र के साथ सत्र का समापन किया.
अगले सप्तांत से मैं कुछ दिनों के अवकाश पर भारत प्रवास हेतु जा रहा हूँ. संभवतः ५ दिसम्बर तक में वापस ब्रिटेन आ जाऊँगा. उसके पश्चात ही मैं अब हिंदी कक्षाओं में भागीदार बन सकूँगा. तब तक मेरे सहयोगी श्री रवि जी पर इन कक्षाओं की जिम्मेदारी है और मुझे पूरा विश्वास है की रवि जी कुछ अभिभावकों की सहायता से हमारी इन हिंदी कक्षाओं को नियमित रूप से करवा सकेंगे. में व्यक्तिगत रूप से रवि जी और सभी अभिभावकों का उनके इस प्रयास के लिए अभिनन्दन करता हूँ और धन्यवाद भी प्रेषित करता हूँ.
और हाँ इसका अर्थ यह भी हुआ कि अब मैं यह अपना ब्लॉग ५ दिसम्बर दिन रविवार के बाद ही अपडेट कर पाऊंगा. इसलिए क्षमा प्रार्थी भी हूँ. परन्तु जैसा मैंने ऊपर कहा है कि हमारी अगली कुछ कक्षाओं में हिंदी वर्णों और रोमन लिपि में लिखे हुए वाक्यों का बच्चों को अभ्यास कराया जायेगा.
धन्यवाद और शुभम.....

Saturday 13 November 2010

हिंदी भाषा का इतिहास - V : देवनागरी लिपि

'देवनागरी लिपि' एक लिपि का नाम है. हिंदी भाषा को लिखने के लिए हम देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करते हैं. यह लिपि भारतीय उपमहाद्वीप की बहुत सारी भाषाओं और उपभाषाओं को लिखने में प्रयोग होती है. जैसे हिंदी, मराठी, नेपाली इत्यादि.
आठवी शताब्दी के आस पास में देवनागरी लिपि का उदय हुआ प्रतीत होता है.संस्कृत देवभाषा है अत: जिस लिपि में वह लिखी गयी वह ही देवनागरी लिपि है. सर्वप्रथम विजय नगर राज्य के लेखो में नागरी लिपि का प्रयोग देखने में मिलता है. आज दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, राजस्थान, हिमांचल प्रदेश, महाराष्ट्र, नेपाल आदि की हिंदी, मराठी, नेपाली, संस्कृत की यही वाहिका है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३४३ में हिंदी 'देवनागरी लिपि' में ही भारत की राजभाषा है. 
देवनागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है
(i) यह बाएं से दाहिने ओर लिखी जाने वाली लिपि है
(i) इसकी वर्णमाला बहुत ही वैज्ञानिक है. जैसे यह क्रमहीन नहीं है, अ के बाद आ आता है ब नहीं. इसी प्रकार से हस्व-दीर्घ, अघोष-घोष, अल्पप्राण, महाप्राण, क्रमिक उच्चारण, अनुनासिकता आदि सभी क्रम से हैं.
(ii) इसमें उच्चारण और लेखनी में संगती है.अत: यदि वर्णमाला का ज्ञान है तो उच्चारित शब्द को सहज ही लिखा जा सकता है.
(iii) प्रत्येक ध्वनि के लिए स्वतंत्र वर्ण होने के कारण कहीं भी भ्रम की स्थिति नहीं है.
(iv) केवल उन्ही वर्णों को लिखा जाता है जिनका उच्चारण हो सकता है.
(v) इसमें लेखन-मुद्रण के वर्णों में भी एक रूपता है. रोमन लिपि के भांति नहीं की लेखन के अलग वर्ण हों और मुद्रण के लिए अलग, फिर उनमे भी छोटे और बड़े.
प्रसिद्ध कोशकार मोनियर विलियम्स का यह निष्कर्ष उचित ही है
"यह (देवनागरी) सभी ज्ञात लिपियों से अधिक पूर्ण और संतुलित है"
और (देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकी करण, प्रकाशन : केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार, १९८३ में इसका उल्लेख है कि इसमें जो न्यूनतायें थीं उनका निराकरण कर लिया गया है और अब यह विश्व कि किसी भी भाषा के लेखन के लिए पूर्णतया उपर्युक्त है. 

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सहायक ग्रन्थ सूची :
हिंदी सही लिखिए : डॉ रामरजपाल द्विवेदी
इन्टरनेट : 
http://www.ancientscripts.com/devanagari.html(08 Nov 2010)

Sunday 7 November 2010

चौदहवीं कक्षा

चौदहवीं कक्षा : दिनांक ०७ नवम्बर २०१० दिन रविवार

आज की कक्षा में लगभग १० बच्चे थे. सबसे पहले आज बच्चों को २४ अक्टूबर को लिए गए टेस्ट (परीक्षा) का फीडबैक (प्रतिपुष्टि) दिया गया. इस परीक्षा में बच्चों ने अच्छा कार्य किया है और मैंने अपने फीडबैक में कुछ एक त्रुटियाँ सही करने को लिखा भी है. उसके उपरांत बच्चो ने सभी स्वरों और पहले १० व्यंजनों के उच्चारण का अभ्यास किया. फिर बच्चों को हिंदी, एक बोल चाल की भाषा के रूप में समझाई गयी और कुछ वाक्यों का अभ्यास भी करवाया गया जैसे "आप कैसे हो" इत्यादि. बच्चों ने एक दुसरे से यह प्रश्न किया और दूसरे बच्चे ने इसका उत्तर दिया. हिंदी, एक बोल चाल की भाषा के अभ्यास के लिए लिखित सामग्री (एक पेज) बच्चों में बांटी गयी. अब हम इसके बाद लगभग सभी कक्षाओं में हिंदी - बोल चाल भाषा का ही अभ्यास करेंगे. आज की कक्षा के बाद ऐसा लगा कि हम लोग शायद बच्चों की इस प्राथमिक कक्षा में उनसे कुछ वाक्य तो हिंदी में जरूर बोलवा सकेंगे. ५५ मिनट्स के बाद एक-दो खेल खेले गए और फिर दीपावली उत्सव पर एक बहुत ही संक्षिप्त परिचय बच्चों को दिया गया. अंत में गायत्री महा मंत्र के साथ कक्षा का समापन किया गया.
        आज कुछ अभिभावकों के साथ १९ दिसम्बर दिन रविवार को हिंदी कक्षा के वार्षिक उत्सव के आयोंजन पर विचार किया गया और अगले सफ्ताहंत तक प्रारंभिक तैयारिओं के बाद अंतिम निर्णय लिया जायेगा. इस प्रस्ताव हेतु १९ दिसम्बर को एक छोटे से प्ले और एक गीत का बच्चों से प्रस्तुत करवाए जाने का सुझाव है. देखिये क्या होता है. अगले सप्ताहांत तक मैं शायद और विवरण दे सकूँ. 
शेष फिर, धन्यवाद.

Wednesday 3 November 2010

तेरहवी कक्षा

तेरहवी कक्षा : दिनांक ३१ अक्टूबर २०१० दिन रविवार

आज की कक्षा में फैन्सी ड्रेस की ही धूम रही. बच्चे बहुत ही उत्साहित थे. कक्षा के कार्य कलाप समझाने के बाद पहले हम सब ने लगभग ४५ मिनट्स तक हिंदी का अभ्यास किया. बच्चे जिन वस्त्रों या चरित्र में आये थे उसको हिंदी में लिखना सिखाया गया. अंत के कुछ व्यंजनों जैसे क्ष, त्र, ज्ञ की अभ्यास शीट दी गयी जिसका अभ्यास  बच्चे घर पर लिख कर करेंगे. इसी के साथ अब स्वरों और व्यंजनों को लिखने के अभ्यास का समापन हो गया. बच्चे अब वर्णमाला को पहचान सकते हैं और यदा कदा सही उच्चारण भी करते हैं. अब हमारा ध्यान मात्राओ  की सहायता से सामान्य बोलचाल की हिंदी भाषा का बच्चों को अभ्यास करवाना हैं. अगली कक्षा में हम हिंदी, एक बोलचाल की भाषा के रूप में पढ़ाएंगे.
       आज ४५ मिनट्स की कक्षा के बाद बच्चों ने अपने चरित्रों के बारे मैं सबको बताया. कोई बच्चा रावण, कुम्भकरण, मेघनाथ, रावण की सेना के राक्षस और कोई सूर्पनखा तो कोई बच्चा अहि रावण की वेशभूषा में आया था. बच्चों के मुह से इन चरित्रों के बारे में सुनकर बड़ा ही अच्छा लगा. उसके बाद बच्चों ने थोडा कला-शिल्प में दीपावली का एक सुन्दर कार्ड बनाया. हमेशा की तरह सभी ने मिलकर गायत्री महामंत्र के गायन के साथ कक्षा का समापन किया.

Sunday 24 October 2010

बारहवी कक्षा

बारहवी कक्षा : दिनांक २४ अक्टूबर २०१० दिन रविवार

आज सबसे पहले बच्चों को कक्षा में होने वाले कार्यकलाप के बारे में बताया गया. फिर बच्चों की परीक्षा ली गयी. इस परीक्षा का उद्देश्य बच्चों का अभी तक के अभ्यास को परखना था. बच्चो को केवल कक्षा की उच्चारण सूचिका से रोमन लिपि में लिखे हुए शब्दों को पहचान कर लिखना था. ५ से ८ साल के बच्चों का खुली पुस्तक के आधार पर परीक्षा ली गयी और ८ से १२ साल तक के बच्चों का बिना पुस्तक की परीक्षा ली गयी.यह परीक्षा ३० मिनट की थी और बच्चों ने उत्साहपूर्वक इसमें भाग लिया.परीक्षा के अंत में कुछ वर्णों, जैसे श, ष, स, ह की प्रैक्टिस शीट दी गयी. बच्चों को इन वर्णों के लिखने का घर पर अभ्यास करना होगा. इसी के साथ  बच्चों को बड़े आकर की शीट में सम्पूर्ण हिंदी वर्णमाला भी दी गयी है. बच्चे इसे अपने घर पर दीवार पर चस्पा कर के ज्यादा और लगातार अभ्यास कर सकते हैं.
                    परीक्षा के बाद बच्चों को अगली कक्षा में होने वाली विषय "मात्राओं" के बारे में संक्षेप में बताया गया. वर्णों के अभ्यास के बाद अगली कक्षा में हम मात्राओं पर ध्यान देंगे. आज से हमारी कक्षा में व्यकल्पिक अध्यापक की व्यवस्था हो गयी है. उनका नाम श्री रवि जी है और उनकी बेटी भी कक्षा में पड़ती है. रवि जी कुछ कक्षाओं में अभी अभ्यास कर के फिर कक्षा लेंगे.
                    
आज की कक्षा का अंत सभी के संक्षिप्त परिचय के साथ हुआ. और साथ में कुछ अभिभावकों  ने बच्चों को आने वाली हिन्दू उत्सव दीपावली के महत्त्व पर शैक्षिक ज्ञान दिया. अगले सप्ताहांत बच्चों को विशिष्ट परिवेश में आने को कहा गया है क्योंकि कक्षा में हम लोग फैंसी ड्रेस का आयोजन कर रहे हैं. इस अवसर पर बच्चों को हिन्दू महा काव्य "राम चरित मानस" के खराब चरित्रों, जैसे रावन, सूर्पनखा इत्यादि, के परिवेश में आना है. इसका कारण यह है की उसके अगले सप्ताह Halloween और दीपावली उत्सव है और इस फैंसी ड्रेस कार्यक्रम के द्वारा हम कक्षा में बच्चों को इन उत्सवों का महत्त्व पढ़ाएंगे. साथ में उन ख़राब चरित्रों के नाम भी लिखना बताएँगे. आशा है बच्चे इस उत्सव और अगली कक्षा का सप्ताहांत में आनंद उठायेंगे.

Sunday 17 October 2010

हिंदी भाषा का इतिहास - IV : लिपि

लिपि (Script) एक प्रकार से कुछ संकेतों का बंडल है जिसका उपर्युक्त प्रयोग लेखन क्रिया (Writing System) में किया जाता है. दूसरे शब्दों में श्रव्य ध्वनियों (भाषा) को द्रश्य रूप देने वाली प्रतीक व्यवस्था लिपि कहलाती है.
    वास्तव में भाषा के बाद मनुष्य का श्रेष्ठ अविष्कार लेखन ही है. आज संसार में लगभग चार सौ से अधिक लिपियाँ हैं और सभी अपनी अपनी लिपि को ही प्राचीन, महत्वपूर्ण, पूर्ण और ईश्वर निर्मित ही के कारण पवित्रतम मानते हैं. अपने यहाँ जैसे लिपि की निर्माता ब्रह्मा जी माने गए हैं. अत: भाषा की ही भांति लिपि का इतिहास भी अनुमाश्रित ही है परन्तु आदि काल में मनुष्य को कुछ न कुछ लेखन कला जरूर आती थी. उद्धरण के लिए हनुमान जी ने सीता जी को मनोहर राम-नाम अंकित मुद्रिका दिखाई थी. सीता जी ने राम की लिखाई पहचान ली होगी तभी वानर पर विश्वास किया.
इसके अतिरिक्त पंडित राजबली पांडेय जी ने इंडियन पेलिओग्राफी में एवं अनन्य में भरा में लिपि-विकास का सविस्तार वर्णन किया है. जिसका सार-संक्षेप यों है :
-- ह्वेनसांग (६३०-६४४ इ) भारत से लगभग ६५० पुस्तकें लादकर ले गया था जिसको लिखने में कई शताब्दियाँ लगी होंगी.
-- इंडिका में मेगस्थनीस (चौथी शताब्दी इ. पूर्व) गवाह हैं की यहाँ प्रस्तर फलकों पर खोदकर लिखा जाता था और जन्मपत्रियाँ बनाई जाती थीं.
-तीसरी शताब्दी ई पूर्व के अशोक के दसियों स्तम्भ लेख और शिलालेख उपलब्ध हैं जो भारत की लेखन कला के जीते जागते प्रमाण हैं.
-वैदिक साहित्य विश्व का प्राचीनतम साहित्य है जो आज भी यथावत रूप में उपलब्ध है. लिपि के अभाव में उसे इतनी उम्र नहीं मिल सकती थी.
-ऋग्वेद (६ / ५३ / ७) में आरिख पद मिलता है जो आलेख अर्थात लिपि का ही अपर नाम है.
        इसके अतिरिक्त लौकिक साहित्य में भी कम संकेत नहीं. रामायण में, जैसा पूर्व में कहा गया कि अंगूठी राम-नाम से अंकित थी -  "रामनामांकित चेदं पश्य देव्यंगुलीयकम"
समग्र वाड्मय को देखने से पता चलता है कि प्राचीन भारत में मुख्यतया तीन लिपियाँ प्रचलन में थीं
(i) सैन्धव लिपि
    १८५६ में जनरल कनिघम ने हड़प्पा कि यात्रा के दौरान सिन्धु - लिपि में लिखी कुछ मुहरें प्राप्त की थीं)
(ii) ब्राह्मी लिपि
    यह भारतवर्ष के आर्यों का अपनी खोज से उत्पन्न किया हुआ मौलिक आविष्कार है इसकी प्राचीनता और सर्वांगसुन्दरता के कारण इसके कर्ता ब्रह्मा जी को माना गया है और इसीलिए यह ब्राह्मी लिपि कहलाई. ई0 पूर्व पांचवी शताब्दी से नौ सौ वर्षों तक प्राप्त भारतीय शिलालेख बाएं ओर से दायें ओर लिखी जाने वाली ब्राह्मी लिपि ही है.
(iii) खरोष्टि लिपि
    ब्राह्मी लिपि के साथ साथ खरोष्टि लिपि भी भारत की प्राचीनतम लिपि है. इ पूर्व तीसरी शताब्दी में भारत के उत्तर पूर्व सीमान्त प्रान्त के आस पास यह गंधार प्रदेश में प्रचलित थी
                      देव नागरी अथवा नागरी लिपि भारत की प्राचीन लिपि ब्राह्मी की ही सर्वश्रेष्ठ संतान है. जिसमे आज संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली आदि भाषाएँ लिखी जा रही हैं और जिनका उपयोग दिन-ब-दिन बढता ही जा रहा है. "नागरी अंक और अक्षर एवम भारतीय प्राचीन लिपिमाला"  में ओझा जी लिखते हैं
"जिनको प्राचीन लिपियों का परिचय नहीं है, वे सहसा यह स्वीकार नहीं करेंगे की हमारे देश की नागरी, शारदा, गुरुमुखी, बंगला, उड़िया, तेलुगु, कन्नड़, तमिल, आदि समस्त लिपियाँ एक ही मूल लिपि ब्राहमी से निकली हैं"

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सहायक ग्रन्थ सूची :

हिंदी साहित्य का संछिप्त इतिहास - NCERT - कक्षा १२
हिंदी सही लिखिए : डॉ रामरजपाल द्विवेदी
नागरी अंक और अक्षर एवं भारतीय प्राचीन लिपि माला : ओझा
इंडियन पेलिओग्राफी : ए एच दानी
इंडियन पेलिओग्राफी : डॉ राजबली पांडेय
इन्टरनेट : 
http://www.hindubooks.org/david_frawley/myth_aryan_invasion/indus_writing/indus_writing.htm(21 Sept 2010)

Sunday 10 October 2010

ग्यारहवी कक्षा

ग्यारहवी कक्षा : दिनांक १० दिसम्बर २०१०, दिन रविवार

आज की कक्षा की शुरुवात एक नैतिक कहानी से हुई और बच्चों को हिंदी सीखने के लिए निरत प्रयास के महत्त्व पर शिक्षा दी गयी. फिर मैंने बच्चों को दो वर्णों को जोड़कर शब्द बनाने का अभ्यास कराया. यह अभ्यास , मेरी दृष्टी से, हिंदी सीखने की दिशा में एक कठिन मगर महत्वपूर्ण कड़ी है. परन्तु मुझे बड़ी ख़ुशी हुई जब ज्यादातर बच्चों ने अधिकतर दो वर्णों के शब्दों का बहुत ही सुन्दर उच्चारण किया. कुछ बच्चों का उच्चारण तो बहुत ही स्पष्ट था. एक छोटे से ब्रेक के बाद बच्चों ने व और श केवल दो वर्णों के लेखन और उच्चारण का अभ्यास किया. अंत में बच्चों ने दो खेलों को खूब जोश से खेला. शिक्षा का समापन गायत्री महामंत्र के साथ हुआ और हम सब ने मिल कर तीन बार साथ में गायत्री महामंत्र का उच्चारण किया.
आजकल कम्युनिटी सेंटर में नवरात्र का उत्सव होने के कारण लोगों का बहुत आना जाना होता है और इसलिए कभी कभी कक्षा में व्यवधान भी पड़ता है. हमें आशा है कि यह व्यवधान नवरात्र उत्सव के साथ ही समाप्त हो जायेगा. 
अगले सप्ताहांत (१७ अक्टूबर को) अभिभावक और अध्यापक बैठक है और इसमें हिंदी सिखाने के लिए कैसे सब मिलकर काम करें इस पर चर्चा होनी है.  बैठक का समय प्रातः १०:०० बजे से ११:०० बजे तक है. अत: अगले सप्ताहांत हिंदी कक्षा नहीं होगी.

हमारी अगली कक्षा २४ अक्टूबर दिन रविवार को है इस दिन बच्चों की एक छोटी से परीक्षा ली जाएगी और देखेंगे कि बच्चों ने कितना सीखा है. यह परीक्षा हिंदी के वर्णों को पहचानने पर आधारित होगी.यह ४५ मिनट की परीक्षा है इसका समय १० बजे से १०:४५ है. (परीक्षा के बाद) २४ अक्टूबर की कक्षा में तीन और चार वर्णों को जोड़कर शब्दों का अभ्यास भी  कराया जायेगा.
आप सभी को देवी नवरात्र उत्सव पर बहुत सारी शुभकामनाएं.शेष फिर अगली कक्षा में बाद.
धन्यवाद.

Monday 4 October 2010

दसवी कक्षा

दसवी कक्षा : दिनांक ०३ अक्टूबर २०१० दिन रविवार

आज से कक्षा में थोडा बदलाव किया गया. जैसा मैंने पहले कहा था कि एक अध्यापक होने के नाते यह हमारा उत्तरदायित्व है कि बच्चों कि रूचि हिंदी सीखने में बनी रहे वर्ना किसी भी कक्षा का कोई महत्व नहीं है इसलिए आज से कक्षा में लगभग २० मिनट के खेल को भी शामिल कर लिया गया है. इसका मतलब यह हुआ कि बच्चों के साथ अब मैं भी २० मिनट तक कुछ शारीरिक व्यायाम कर सकूँगा.
आज थोडा कम वर्ण हो सके और हम केवल तीन वर्णों य, र, ल के उच्चारण और लेखन का ही अभ्यास करवा सके. हमारी कोशिश रहेगी कि अगले तीन कक्षाओं में हम बाकी बचे हुए ९ व्यंजनों का अभ्यास करवा सकें (व, प, श, ष, स, ह, क्ष त्र ज्ञ). बच्चों कि संख्या भी आज करीब १८ के लगभग हो गयी थी और कक्षा भरी भरी से लग रहीथी. १० मिनट के एक छोटे से ब्रेक के बाद हमने दो वर्णों को जोड़कर शब्द बनाने का एक छोटा सा परिचय दिया.
अगली कक्षा में हम अब बचे हुए वर्णों के साथ शब्दों को बनाने का अभ्यास करेंगे. आशा है आपको यह लेखन अर्थपूर्ण लग रहा होगा. कृपया अपने विचार प्रेषित करते रहें.
धन्यवाद.

Tuesday 28 September 2010

नवी कक्षा

नवी कक्षा : दिनांक २६ सितम्बर २०१० दिन रविवार

जैसा की तय था, आज की कक्षा चित्रा जी ने बड़े ही सुन्दर ढंग से पूरी करवाई. बच्चों को कुछ और व्यंजनों के उच्चारण और लेखन का अभ्यास करवाया गया. चित्रा जी ने टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) और पवर्ग (प, फ, ब, भ, म) का बच्चों को अभ्यास कराया. इसके साथ ही अब तक हम अपनी हिंदी कक्षा में निम्नलिखित स्वर और व्यंजनों के लेखन और उच्चारण का अभ्यास कर चुके है.
स्वर
              अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, अं, अ:
व्यंजन
              क, ख, ग, घ, ड़        (कवर्ग)
              च, छ, ज, झ, ञ       (चवर्ग )
              ट, ठ, ड, ढ, ण         (टवर्ग)
              त, थ, द, ध, न         (तवर्ग )
              प, फ, ब, भ, म        (पवर्ग )

और जिन व्यंजनों के उच्चारण और लेखन का अभ्यास बच गया है वे हैं.....
              य, र, ल, व        
              श, ष, स, ह
              क्ष, त्र, ज्ञ     

अपनी अगली दो कक्षाओं में हम कोशिश करेंगे कि यवर्ग और संयुक्त व्यंजनों को करवाया जा सके.

परन्तु आज की कक्षा के बाद एक बच्चे के अभिभावक का कक्षा के बारे में बड़ा ही उचित विचार आया कि बच्चों को यह स्वर और व्यंजनों का लेखन बड़ा ही कठिन और बोरिंग लग रहा है अत: यदि हो सके तो अपनी इस हिंदी कक्षा को कुछ और मनोरंजक और सुगम बनाया जा सके तो अच्छा होगा. सबसे पहले तो हम उन अभिभावकों की प्रतिपुष्ठी (फीडबैक) का स्वागत करते हैं और धन्यवाद देते हैं की उन्होंने हमारा मार्ग दर्शन किया. इस सलाह को ध्यान में रख कर हम लोग कक्षा में कुछ और क्रियाकलाप को सम्मिलित करेंगे और बच्चों में हिंदी के प्रति उत्साह लाने का प्रयास करेंगे. अगली कक्षा कि जिम्मेदारी मेरी है और हम कोशिश करेंगे कि बच्चे अपना खोया हुआ उत्साह पुनः प्राप्त  कर सकें.जैसा मैंने अपने एक पिछले ब्लॉग में भी कहा था कि बच्चे कभी भी कुछ भी कह सकते हैं और वह भी बिना किसी राग लपेट के, इसलिए उनकी इस भावनाओं को समझना हम अध्यापकों और अभिभावकों का कर्त्तव्य है.

अंत में, आज चित्रा जी का अपनी हिंदी कक्षा में अंतिम दिन था. चित्रा जी दो माह की लम्बी छुट्टियों में जा रही हैं अत: वे कक्षा नहीं ले सकेंगी. अध्यापन की दृष्टी से अब यह जिम्मेदारी मुझे अकेले ही उठानी होगी, कम से कम तब तक जब तक कि चित्रा जी के व्यकल्पिक अध्यापक की खोज न हो जाये.चित्रा जी को बहुत बहुत धन्याद कि वे अध्यापन के इस पुनीत कार्य में साधक बन सकीं. 
धन्यवाद

Tuesday 21 September 2010

आठवी कक्षा

आठवी कक्षा : दिनांक १९ सितम्बर २०१० दिन रविवार

आज एक संक्षिप्त नैतिक कहानी के साथ कक्षा की शुरुआत हुई.
आज की कक्षा में हमने ७ व्यंजनों त, थ, द, ध, न, प, फ का अभ्यास बच्चों को कराया. आज शुरू से मेरे मन में था की थोडा तेज अभ्यास करेंगे और बच्चों ने भी इसमें सहयोग किया. उनकी गति भी अनुकूल थी थोडा तेज पढ़ने के लिए. परन्तु अंत आते आते मुझे यह अहसास होने लगा था कि कक्षा उत्साह वर्धक नहीं रह गयी और बच्चों का मन अब और अभ्यास में नहीं लग रहा है.  कुछ बच्चे तो इतने स्पष्ट थे कि उन्होंने मुझे कह ही दिया कि अब बस बहुत हो गया और हमें घर जाना है. यह सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा कि बच्चे जो भी होता है वह साफ़ साफ़ कह देते हैं बिना किसी राग लपेट के.
सारांश में यह समझ में आया कि कुछ बच्चे तो बड़ी ही अच्छी गति से सीख रहे हैं परन्तु कुछ बच्चों की सीखने की गति अभी  भी चिंता जनक है. हम शिक्षकों को और साथ में उनके माता - पिता को भी शायद और अभ्यास करना है कि कैसे उन बच्चों के सीखने कि गति को बढाया जा सके.
आज शायद कुछ सम्वादहीनता के कारण टवर्ग वर्णमाला (ट, ठ, ड, ढ, ण) छूट गयी और हमने त, थ इत्यादि  से शुरू करवा दिया. अत: यदि  अगली  कक्षा में टवर्ग वर्णमाला और कुछ और व्यंजन हो सकें तो बहुत ही अच्छा होगा.
कक्षा  का समापन "गायत्री  महामंत्र "के साथ हुआ . आज शायद  कम्युनिटी  सेंटर  में गणपति विसर्जन का कार्यक्रम  था अत:  कक्षा के अंत समय में थोडा कोलाहल  सा  प्रतीत  हो रहा था और बच्चे भी थोडा उलझे हुए से लग रहे थे.
कुल मिलाकर बड़ा आनंद आया बच्चों के साथ उत्कृष्ट समय गुजार कर और उनसे बहुत कुछ सीख कर.अगले सप्ताहांत में कुछ व्यक्तिगत व्यस्तताएं  हैं जिसकी  वजह से में कक्षा में शायद उपस्थित न रह सकूँ.
धन्यवाद

Saturday 18 September 2010

हिंदी भाषा का इतिहास - III : भाषा

भाषा शब्द संस्कृत का है जिसकी उत्पत्ति व्यक्तवाणयर्थक 'भाष' धातु से है परन्तु लोक-व्यवहार में इसका प्रयोग अत्यंत व्यापक अर्थ में किया जाता है-' दूसरों तक अपना अभिप्राय पहुँचाने का साधन - कैसी भी मूक अथवा मुखर '.
मूक साधन वो हैं जिनमे वाणी का प्रयोग बिलकुल नहीं होता है. ऐसे साधन भी दो प्रकार के माने गए हैं - इंकित और संकेतमय.
इंकितमय साधनों में विभिन्न प्रकार की आंगिक चेष्टाएँ आती हैं यथा ऑंखें मटकाना, पैर पटकना और गर्दन हिलाना इत्यादि. संकेतमय साधन अंग-वाह्य होते हैं. इन संकेतों में आज भी अभिप्राय-प्रेषण की क्षमता मौजूद है जैसे सिपाही का सिटी बजाना, रेलवे गार्ड की हरी-लाल झंडी, चुराहे की लाल-पीली-हरी बत्ती इत्यादि. कहने की आवश्यकता नहीं कि इन मूक साधनों से एक सीमा तक ही अपनी बात पहुचाई जा सकती है.

इसी प्रकार से मुखर साधन (जिसमे वाणी का प्रयोग होता है) भी अव्यक्त और व्यक्त दोनों तरह के होते हैं.
अव्यक्त साधन मानवेतर पशु-पक्षी और जीव-जंतु द्वारा अपने जाते हैं जैसे किसी भी समय यह देखा जा सकता है की शत्रु पक्षी / पशु को निहार कर पक्षी और पशु विशेष प्रकार की ध्वनि करते हैं जिससे अन्य पक्षी और पशु चौकाने होकर वो ही ध्वनि निकालने लगते हैं.

व्यक्त वक् केवल मनुष्य की है. जिसका स्वरुप निश्चित है, जिसकी संरचना सर्व स्वीकृत है. अत: सीखना और सीखाना तनिक से श्रम से ही संभव है तथा जिसका अध्धन -विश्लेषण संभव है. इस वाक् में भी निरर्थक ध्वनियाँ हो सकती हैं. भाषा विज्ञान की अध्येय वाक् सार्थक ध्वनि समूह हिया. वो ही 'भाषा' है.

बाबु श्याम सुन्दर दास जी ने कहा है "विचार की अभिव्यक्ति के लिए व्यक्त ध्वनि संकेंतो के व्यवहार को ही भाषा कहते हैं (भाषा रहस्य, प 43)    
ए एच गार्डिनर कहते हैं - 'विचाराव्यक्ति के लिए व्यक्त ध्वनि संकेंतो का प्रयोग भाषा कि सर्वमान्य परिभाषा है. (स्पीच और लैंगग्वज)भाषा के  विभिन्न रूप - यों तो भाषा के अनेकानेक रूप हैं, या कहो जितने व्यक्ति हैं, भाषा के उतने ही प्रकार हैं. फिर भी सामान्यत: उनके निम्लिखित रूप प्रचलित हैं.

(i) व्यक्ति-बोली (ईडियोलेक्ट) - भाषा का यह लघुतम रूप है. अपने परिवेश, संस्कारों और स्तर के हिसाब से व्यक्ति की बोली में एक प्रकार की विशेषता आ जाती है. इसी कारण से एक व्यक्ति कि बोली दूसरे व्यक्ति से भिन्न हो जाती है.

(ii) बोली (सब-डाईलेक्ट) - छोटे से क्षेत्र की व्यक्ति-बोलीओं का सामूहिक रूप बोली है. यह नितांत स्थानीय है जिसमे साहित्यिक रचनाएँ नहीं होती हैं.

(iii) उपभाषा / विभाषा (डाईलेक्ट) - एक प्रान्त के बोल चाल की और साहित्यिक रचना की भाषा विभाषा कहलाती है. एक विभाषा में अनेकों बोलियाँ हो सकती हैं. हिंदी भाषा है, कड़ी बोली, ब्रज, अवधी, भोजपुरी आदि विभाषाएं, जिनके अंतर्गत अनेकों बोलियाँ हैं जैसे मेरठ की बोली, सहारनपुर की बोली, मथुरा की बोली, एटा की बोली आदि आदि. जब विभाषा में साहित्य प्रभूत मात्र में रच जाता है तब वो भाषा की पदवी पा लेती है जैसे ब्रजभाषा, अवधी या आज की खड़ी बोली.

(iv) मानक भाषा (स्टैन्डर्ड भाषा)-  इसी को आदर्श या मानक भाषा कहते हैं. व्याकरण की नज़र से यह एकरूपा होती है. होती तो यह भी आरम्भ में विभाषा ही परन्तु अपनी साहित्यिक श्रेष्टता के कारण अपनी सहोदर विभाषाओं पर श्रेष्टता स्थापित कर सब के लिए आदर्श बन जाती है. बाबु श्याम सुन्दर दास इसीलिए इसे 'कई विभाषाओं में व्यवहृत होने वाली शिष्ट-परिग्रहित विभाषा' कहते हैं (भाषा विज्ञान, प २३). 

(v) राष्ट्र भाषा (नेशनल लैंगग्वज) और राज भाषा (अफिशल लैंगग्वज) : मानक भाषा जब अनेकों क्षेत्रों में अभिव्यंजन का माध्यम बन जाती है तब वो राष्ट्र भाषा कहलाती है. सामान्यतः इसी में सरकारी काम काज होता है तब यह राज भाषा  कहलाती है.
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सहायक ग्रन्थ सूची :
हिंदी साहित्य का संछिप्त इतिहास - NCERT - कक्षा १२
हिंदी सही लिखिए : डॉ रामरजपाल द्विवेदी

Thursday 16 September 2010

सातवी कक्षा

सातवी कक्षा : १२ सितम्बर २०१० दिन रविवार

आजकल यहाँ कम्युनिटी सेंटर में गणपति उत्सव की हलचल है. अत: बच्चों के साथ गणपति महोत्सव  पर चर्चा  हुई .आज की कक्षा की जिम्मेदारी चित्रा जी पर थी और बहुत ही सुन्दर ढंग से आप ने अगले कुछ व्यंजनों च, छ, ज, झ, ञ का बच्चों  को  अभ्यास  कराया . हमारा प्रयास रहेगा कि हम अगली कक्षा में इसके आगे के ६ या ७ व्यंजन करवा सकें .

चित्रा जी ने ब्लैक बोर्ड पर व्यंजन लिखे और छात्रों  से बारी- बारी से उच्चारण करवाया. फिर कुछ छात्रों ने ब्लैक बोर्ड  पर व्यंजन लिखने का अभ्यास किया. इस बात पर काफी जोर दिया कि जब वह घर पर अभ्यास करेगे दो उनकी सीखने की गति तीव्र हो सकेगी और वे शब्द शीघ्र सीख सकेंगे. उनके माता पिता को भी इस बात का स्मरण कराया और यह भी बताया गया कि अगली कक्षा में और अन्य व्यंजन कराये जायेंगे.

अंतिम के कुछ समय में बच्चों ने अपनी पसंद के दो  गीत गए. साथ में यह तय किया गया कि एक गीत "हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें ........." को गाने का हमारी हिंदी कक्षा में प्रयास किया जायेगा . यह बहुत ही सुन्दर बात है की बच्चे अब अपनी तरफ से कक्षा में भाग ले रहे हैं और उनके माता पिता उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं. इसप्रकार बच्चे हिंदी भाषा में अपनी पसंद को कक्षा के और बच्चों के साथ बाँट रहे हैं. बच्चों की शिक्षा में इस प्रवृत्ति का हमेशा ही अच्छा असर दिखाई देता है.

अंत में आप सभी को भी गणपति उत्सव की शुभ कामनाएं .
धन्यवाद

Sunday 5 September 2010

छ्टी कक्षा

छ्टी कक्षा  : ०५ सितम्बर २०१० दिन रविवार

आज अध्यापक दिवस है. यह दिन भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली  राधाकृष्णन का जन्मदिन है और यह भारत के स्कूलों में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है. आज के दिन स्कूलों में अध्यापक गणों का समस्त स्कूल की तरफ से सम्मान कार्यक्रम का आयोजन होता है. आज जब स्कूलों और विश्वविधयालयों में अनुशासन हीनता इस कदर बढ़ गयी है की छात्र अपने अध्यापकों का सम्मान भी करना भूल चूका है तब इसका महत्त्व सारे संसार के लिए आज भी बड़ा ही प्रासंगिक है. अत: हमने आज के कक्षा में बच्चों को इस उत्सव के बारे में संक्षेप में बताया गया.
साथ में आज बच्चों के साथ एक और महत्वपूर्ण उत्सव जन्माष्टमी पर भी संक्षिप्त चर्चा की. बच्चों को बताया गया की जन्माष्टमी का उत्सव भगवान् श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में सारे विश्व में मनाया जाता है.

इसके अतरिक्त आज मैंने कक्षा में पूर्व में किये हुए व्यंजनों का संक्षिप्त पुन: अवलोकन के बाद चार और व्यंजन पढाये और वे हैं ग, घ, ड़, च . इनके लेखन और उच्चारण का भी अभ्यास कराया गया. बच्चे जो थोड़े छोटे हैं उन्हें परेशानी हो रही है वर्णों के लेखन में. बड़े बच्चे भी संतुलित और एक सा बार बार लिखने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं. ऐसा इस लिए भी शायद हो रहा है क्योंकि बच्चे घर पर बिलकुल भी अभ्यास नहीं कर रहे हैं. मेरा पूरा विश्वास है की यदि उन्हें हफ्ते में २ घंटे भी घर पर प्रयास करा दिया जाये तो वे बहुत आछा करेंगे.

इस प्रकार से अभी तक हम लोगों ने कुल ६ व्यंजन करवाए हैं. पुन: कक्षा तेज गति से पढ़ने की अब अवश्यकता है क्योंकि ३४ व्यंजनो को पूरा करने में इस गति से काफी समय लग जायेगा. अब हम कोशिश करेंगे की कक्षा में कम से कम ७ व्यंजन हम करवा सकें ताकि अनुमोदित समय सारणी के अनुसार हम कक्षा को दिसम्बर तक एक गंतव्य तक पहुंचा सकें.

अंत में मैंने बच्चों को www.hindigym.com की वेब साईट के बारे में पुन: बताया और अगले सप्ताह गृह कार्य के लिए इस वेब साईट पर उपलब्ध इन चार नए वर्णों की कार्य शीट पर और अभ्यास कर के लाने के लिए कहा  है

जैसा मैंने आपसे पहले कहा था उस के अनुसार में इस ब्लॉग में हिंदी कक्षा का अनुमोदित कार्यक्रम संलग्न कर रहा हूँ. आशा है यह सूचना वर्धक होगा. अब बच्चों के माता- पिता इस कार्यक्रम के अनुसार अपने बच्चों को कक्षा में आने से पहले कुछ अभ्यास करवा सकते हैं. यह बहुत उपयोगी होता है जब आप कक्षा में कुछ पूर्व अभ्यास के साथ आयें. ऐसे में कक्षा में कुछ ज्यादा समझ में आता है और विषय पर चर्चा उपयोगी भी होती हैं.
अभिवादन के साथ
धन्यवाद.





Monday 30 August 2010

पांचवी कक्षा

पांचवी कक्षा, दिनांक ३० अगस्त २०१०, दिन रविवार

आज के कक्षा की जिम्मेदारी चित्रा जी और उषा जी पर थी और मैं अपने निजी कार्य से घर पर ही था.
कक्षा में आज से व्यंजन का अध्धयन आरम्भ हो गया. चित्रा जी ने स्वरों का पूर्ण अभ्यास और प्रथम दो व्यंजन जैसे क, ख, इत्यादि के लेखन और उच्चारण का बच्चों को अभ्यास कराया.

जैसा कि व्यवस्था है उसके अनुसार मेरी जिम्मेदारी अगली कक्षा अर्थात ०५ सितम्बर की है और में उस कक्षा में व्यंजन के अध्यन और लेखन को ही आगे बताऊंगा. मैं पूर्व में किये हुए व्यंजनों का संक्षिप्त पुन: अवलोकन करूँगा और आगे के व्यंजन पर ध्यान दूंगा और कोशिश करूँगा की कम से कम आठ व्यंजन यानी क, ख, ग, घ, ड, च, छ, ज, झ इत्यादि का बच्चों को अभ्यास करवा सकूँ. इतना करने के लिए शायद थोडा पढ़ाई की गति तेज होगी मगर मुझ बच्चों की अभी तक की प्रगति से पूरा विश्वास है की हम यह कर सकेंगे.

कक्षा में न जा कर भी मेरा मन बच्चों के हिंदी ज्ञान के बारे में लगा रहता है और मैं समय निकाल कर पुस्तकालयों और इन्टरनेट में उपलब्ध बहुत सारी जानकारियों का स्वयं अध्धयन करता हूँ और उस में से समय समय पर आपको भी उचित सहायक सूचना ग्रन्थ का परिचय  देता  रहता हूँ. साथ में और भी हिंदी भाषा  से जुडी अन्य रुचिकर सूचना/ जानकारी ब्लॉग में अपलोड करता रहता हूँ. आशा है आप लोग मेरे इस हिंदी ब्लॉग में उपलब्ध सूचना  का लाभ जरूर  लेते  होंगे .

अगली कक्षा से पहले मेरा प्रयास होगा की मैं कक्षा के दिसम्बर २०१० तक के कार्यक्रम के अनुमोदित समय सारणी को इस ब्लॉग में अपलोड  कर सकूँ. शेष विवरण  अगली कक्षा के बाद ....धन्यवाद .

Monday 23 August 2010

चौथी कक्षा

चौथी कक्षा : रविवार दिनांक २२ अगस्त २०१०

इस रविवार की अपनी हिंदी कक्षा बहुत अच्छी रही. कुल मिलकर ६ बच्चों ने भाग लिया
परिवारों को सूचना प्रेषित कर दी गयी कि अब नए नाम कक्षा में नहीं लिए जायेंगे और यह कक्षा दिसम्बर 2010 माह तक चलेगी. अगली कक्षा व्यवस्थाओं अथवा सत्र की घोषणा उचित समय पर चित्रा जी अथवा उषा जी द्वारा की  जाएगी.

आज की कक्षा में मैंने स्वरों (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, इत्यादि) के पुनः उच्चारण का अभ्यास कार्य और कुछ स्वरों (अ , आ, इ, ई) के लिखने का अभ्यास कराया.
लेखन कार्य के अभ्यास में  धीमी गति होने की वजह से मैं तय कार्यक्रमानुसार  व्यंजनओं के अभ्यास की शुरुवात नहीं कर सका. इसके लिए यथा संभव मेरा ही बच्चों की लेखन गति को लेकर पूर्वाग्रह रहा होगा. यह भी सीखने को मिला की कैसे बच्चों के साथ धीरज और एकाग्रता के साथ पदाई करनी चाहिए. 

कक्षा की तंयारी करते हुए मुझे इन्टरनेट की वेबसाइट www.hindigym .com और http://www.shabdkosh.com बच्चों  हेतु  बहुत उपयोगी वेब साईट लगी और मुझे लगता है कि आरंभिक अभ्यास के लिए माता - पिता इस साईट का उपयोग कर सकते हैं.

इसके अतिरिक्त इस सप्ताह हम लोगों ने मिलकर एक ड्राफ्ट कार्यक्रम भी बनाया है जो हम लोग अपनी हिंदी कक्षा में दिसम्बर माह तक बच्चों के साथ पूरा करा सकते हैं. उसको मैं अंतिम चर्चा और अनुमोदन के पश्चात इस ब्लॉग में अपलोड कर दूंगा.

आशा है आप लोगों को यह ब्लॉग थोडा उपयोगी जरूर लग रहा होगा.
कृपया अपने सुझाव सदैव प्रेषित करते रहें जिससे मैं स्वयं को कुछ हिंदी भी सिखा सकूँ और अपनी राज भाषा / राष्ट्र  भाषा हिंदी की थोड़ी सेवा भी कर सकूँ.  आपके हर सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

आखिर में, आप लोगों को रक्षा बंधन उत्सव (जो कि मंगलवार , दिनांक २४ अगस्त को है) की हार्दिक शुभ कामनाएं.

Saturday 21 August 2010

हिंदी भाषा का इतिहास - II

भारत की सभी आर्यभाषाओं की तरह हिंदी का जन्म और विकास भी भारतीय प्राचीन आर्यभाषाओं से हुआ है. विद्वानों ने सामान्य रूप से भारतीय भाषा के विकास क्रम को तीन भागों में विभाजित किया है
(अ) प्राचीन भारतीय भाषा (१५०० ई० पूर्व से ५०० ई० पूर्व तक)
(आ) मध्य कालीन  भारतीय भाषा (५०० ई० पूर्व से १०००  ई० तक)
(इ) आधुनिक भारतीय भाषा (१००० ई० से अब तक)

संस्कृत भारतीय आर्यभाषाओँ के विकास की प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है. यह भाषा देववाणी नाम से भारत ही नहीं, अपितु विश्व के एकाधिकार देशों में सम्मानित पद पर शोभायमान रही है.

डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का यह कथन महत्वपूर्ण है
"हिमालय के सेतुबंध तक, सारे भारतवर्ष के धर्म , दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा आदि विषयों की भाषा कुछ १०० वर्षों पहले तक एक ही रही है. यह भाषा संस्कृत थी. भारवर्ष का जो कुछ शेष और रक्षा योग्य है वो  यह भाषा की भण्डार में संचित किया गया है. इसके लक्षाधिक ग्रंथों के पठन पाठन और चिंतन में भारतवर्ष के हजारों पुश्त तक के करोंडो सर्वोतम मस्तिस्क दिन रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं. मैं नहीं जानता की संसार के किसी देश में, इतने काल तक, इतनी दूर तक व्याप्त इतने उत्तम मस्तिस्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं, शायद नहीं."

प्राचीन भारतीय आर्यभाषा में संस्कृत के दो रूप मिलते हैं : वैदिक और लौकिक . वैदिक संस्कृत का सर्वोतम स्वरुप ऋग्वेद की साहित्यिक भाषा में मिलता है. वैदिक भाषा के धीरे धीरे परिवर्तित होने के कारण उसमे जनभाषा के लक्षण निरंतर आते गए. परिणामस्वरूप लौकिक संस्कृत का जनम हुआ. इस भाषा के रूप को स्थिर करने के लिए ही प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनि को 'अषअध्याय' (Astaadhaya) की रचना करनी पड़ी.

संस्कृत भाषा के विकास के बाद के काल को हिंदी भाषा का मध्य कालीन युग कहा गया. इस काल की सभी भाषों में संस्कृत कहीं न कहीं मूल में दिखाई देती है.. उदाहरण के लिए पाली भाषा का "धम्म" और "कम्म" का उपयोग संस्कृत भाषा के "धर्म:" और "कर्म: " जैसा ही दिखाई देता है.

भाषा का प्रवाह धारा के प्रवाह के सामान होता है. कबीरदास जी कहते हैं.......
"संस्कृत कबीरा कूप जल, भाषा बहता नीर".

ठोस वस्तुवों की तरह उसका विभाजन संभव नहीं. फिर भी क्रमानुसार पाली, शौरसेनी, प्राकृत, नगर अपभ्रंश अपने अपने समय  में अखिल भारतीय जनसंपर्क की भाषा के गौरवमय पद को शुशोभित करती रही है. मध्य कालीन (५०० ई० पूर्व से १००० इ० तक ) भारतीय आर्यभाषाओँ के विकास क्रम को तीन भागों में सामान्य रूप से रखते हैं:पाली युग ; प्राकृत युग ; अपभ्रंश युग .

पाली का अर्थ है "पाठ"  और ध्यान से देखने से पता चलता है की बौद्ध धर्म का साहित्य पाली में ही लिखा हुआ है.

प्राकृत का अर्थ है "सहज"और यह बहुत से आधुनिक हिंदी उपभाषाओं की मूल भाषा है जैसे कुछ लोग अर्धमागधी, शौरसेनी, इत्यादि भाषाओँ की जनक प्राकृत को ही मानते हैं. जैन धर्म का साहित्य प्राकृत में रचित है. प्राचीन भारत में यह आम नागरिक की भाषा थी और संस्कृत अति विशिष्ट लोगों की भाषा थी.

अपभ्रंश का अर्थ है "दूषित" अर्थात जो शुद्ध ना हो. यह भाषा ही आधुनिक हिंदी भाषा के मूल में है. उदाहरण के लिए  पश्चिम प्रदेश  की भाषा (उर्दू, पंजाबी आदि) के मूल में शौरशेनी अपभ्रंश  है, और मराठी, कोंकणी के मूल में महारास्त्री अपभ्रंश है.गुजराती, राजस्तानी आदि के मूल रूप में नगर अपभ्रंश है.

यहाँ एक बात समझ लेना आवश्यक है की अपभ्रंश की भाषा रूप में यद्यपि अलग सत्ता है, किन्तु, वो संस्कृत, पाली और प्राकृत की अपेक्षा हिंदी के व्याकरणिक ढांचे और शब्द भंडार के बहुत निकट है.अपभ्रंश को इसीलिए 'पुरानी हिंदी' भी कहा जाता है. इस प्रकार अपभ्रंश को मध्य कालीन और आधुनिक कालीन भाषाओँ के बीच के कड़ी माना गया है. अपभ्रंश के ही अतिशय यह देसी रूप और भेद विभिन्न आधुनिक भारतीय भाषाओँ के रूप में विकसित हुए. प्रमुख आधुनिक भारतीय भाषाओँ में हिंदी के अतिरिक्त असमिया, उड़िया, गुजरती, पंजाबी, बंगला, मराठी और सिन्धी की भी गिनती की जा सकतीहै.

हिंदी के अंतर्गत उन सभी बोलियों और उपबोलियों को सम्मिलित किया जा सकता है जो हिंदी प्रदेश में बोली जाती हैं. वास्तव में हिंदी कुछ बोलियों और उपबोलियों का सामूहिक नाम ही है. हिंदी की विभिन्न बोलियों को सामान्य रूप में निम्नलिखित पांच भागों में विभक्त किया गया है.

(i) पश्चिमी हिन्दी (खड़ी बोली, ब्रज, कन्नौजी, हरियानी या बांगरू)
(ii) पूर्वी हिन्दी (अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी)
(iii) राजस्थानी हिंदी (मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाड़ी, मालवी)
(iv) पहाड़ी हिंदी (नेपाली, कुमायूनी, गढ़वाली, चमोली, क्योंठाली, कुल्लई, जौनसारी, सिरमौरी)
(v) बिहारी हिंदी (मैथिली, मगही, भोजपुरी)

इस प्रकार हिंदी के विस्तृत प्रदेश में पांच उपभाषाओं और सत्रह बोलियों का व्यवहार होता है. हिंदी के विस्तृत निजी  क्षेत्र हरियाणा,राजस्थान, हिमांचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार और मध्य प्रदेश का सम्मिलित एक विस्तृत भूभाग है. बहुत सी उपभाषाएं प्रचलन में रही, उन्ही में से एक मुख्य भाषा ब्रज थी जिसका स्थान उन्नीशवी शताब्दी में खड़ी बोली ने लिया.
वर्तमान में बोली जाने वाली हिंदी भाषा इस खड़ी बोली का ही एक रूप है.
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सहायक ग्रन्थ सूची :
राजभाषा हिंदी - डॉ मालिक मोहम्मद
हिंदी साहित्य का संछिप्त इतिहास - NCERT - कक्षा १२
इन्टरनेट : 
http://charm.cs.uiuc.edu/~bhatele/hindi/hindi_intro.htm (01 Aug 2010)
http://www.rootsweb.ancestry.com/~lkawgw/pali.html (12 Aug 2010)
http://jainhistory.tripod.com/prakrit.html (14 Aug 2010)

Sunday 15 August 2010

तीसरी कक्षा

आज दिनांक १५ अगस्त दिन रविवार को हम लोगों ने कक्षा के बच्चों के साथ भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाया. पहले ४५ मिनट्स हिंदी कक्षा का रहा और उसके बाद सभी ने कुछ भारतीय खेल खेले और मिलकर १५ अगस्त मनाया. भारत का झंडा लहराया गया और साथ में मिलकर भारत का राष्ट्र गान भी गाया. अंत में उषा जी ने बच्चों को मिठाईयां भी बांटी.

आज से कक्षा में चित्रा जी ने बच्चों को स्वर अक्षरों के लेखन का अभ्यास शुरू करवा दिया. तो इस प्रकार अभी तक बच्चों ने स्वर अक्षरों के उच्चारण और लेखन का अभ्यास किया है.

याद रहे हिंदी में १३ स्वर अक्षर (vowel) होते हैं और वे हैं (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:).अगले सप्ताहांत हम लोग हिंदी भाषा के व्यंजन भाग को पढेंगे और उसके उच्चारण पर ध्यान देंगे.

यह देख कर बहुत ही अच्छा लगता है की बच्चों की सीखने की आदत और चाह बड़ो की तुलना मैं बहुत ज्यादा होती है और हम बड़ो को बच्चों से जरूर सिखाना चाहिए कि कैसे विनम्रता से कठिन से कठिन विद्या भी गुरु से प्राप्त जा सकती है.

अभी ऐसा लगता है कि बच्चों को घर में अभ्यास नहीं हो पा रहा है. इसके कारण कभी कभी बच्चे कक्षा में खोये खोये से लगते हैं. हम लोग कोशिश करेंगे कि अब बच्चों को घर के लिए कुछ गृह कार्य भी दे सकें जिससे बच्चे कक्षा में पढ़ाई का आनंद ले सकें.

Monday 9 August 2010

दूसरी कक्षा

दिनांक ०८ अगस्त दिन रविवार, हमारी दूसरी हिंदी कक्षा .

इस बार कक्षाओं के  समय में परिवर्तन किया गया. अब हिंदी कक्षाएं  प्रातः ९:३० बजे आरम्भ  होने के बजाये प्रातः १० बजे शुरू होंगी और कक्षा समाप्त होने का समय भी प्रातः ११:०० बजे से बदल कर प्रातः ११:३० कर दिया गया है. इसकी सूचना सभी लोगों को चित्रा जी द्वारा ईमेल से भेज दी गयी है.
 
मै इस सप्ताह कार्दिफ्फ नगर में नहीं था और अपने व्यक्तिगत कार्यों से Lutterworth नगर गया हुआ था. चित्रा जी और उषा जी ने इस सप्ताह क्लास की व्यवस्था सम्हाली . कक्षा में पुनः हिंदी वर्णमाला के स्वर अक्षरों  का बच्चों को अभ्यास कराया गया.


अगली कक्षा में भी पुनः हम लोग स्वर अक्षरों का ही अध्धन करेंगे.साथ में १५ अगस्त का उत्सव मनाएंगे और बच्चों के साथ स्वाधीनता दिवस के महत्व की चर्चा करेंगे और कुछ खेल भी खेलेंगे. साथ ही और अगले हिन्दू उत्सव "रक्षा बंधन " के लिए योजना बनायेंगे.

Sunday 1 August 2010

प्रथम कक्षा

आज दिनांक १ अगस्त २०१०, दिन रविवार को हिंदी की कक्षा विधिवत शुरू होगई और बहुत ही जोश के साथ करीब ५-६ परिवारों ने बढ-चढ़ कर हिस्सा लिया. बच्चों की संख्या भी करीब ११ थी.
शुरुवात करते हुए चित्रा पन्त जी ने बहुत ही सुन्दर ढंग से हिंदी क्लाससेस के महत्व पर प्रकाश डाला और इन कक्षायों के उद्धेश्य  बच्चों के माँ-पिताजी के सामने रखे. चित्रा जी ने बच्चों से संस्कृत का सुन्दर श्लोक बोलवाया और बच्चों को उनका नाम हिंदी में लेने के लिए प्रेरित किया. बच्चों ने बड़े ही सुन्दर ढंग से पूर्ण आत्मा विस्वास के साथ अपना परिचय पुरे क्लास को दिया.
करीब १ घंटे तक विविध विषयों पर बोलने के बाद चित्रा जी ने मेरा परिचय सारे क्लास से कराया. बच्चों के सामने मैंने अपने आप को बच्चे जैसा ही पाया और यह देख कर बहुत ही ख़ुशी हुई की वहां उपस्थित परिवारों को अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति जारुकता है और व्हे प्रयास भी कर रहे हैं की उनके बच्चों में भीवह संस्कार आये.
अब यह जिम्मेदारी हम आयोजको और अध्यापक गन की है कि हिन्दू परिवारों कि इस भावना को बनाने रखने के लिए कठिन परिश्रम करें और बच्चों में हिंदी शिक्षा और हिन्दू संस्कारों का उचित ज्ञान दे संके.
आज बच्चों ने हिंदी वर्ण माला के ६ स्वर अक्षर (अ आ इ ई उ ऊ) का स्पष्ट उत्चारण किया और लगता था कि पदने के लिए उनमे उत्साह है.
कक्षा का समापन फिर से चित्रा जी के संक्षिप्त सूचना से हुआ जिसमे अगले क्लास और अन्य व्यवस्था बताई गयी.
अगले हफ्ते में व्यक्तीकत कार्यों से नगर से बाहर जा रहा हूँ अत: मैं कक्षा में उपस्थित नहीं रहूँगा परन्तु यह ब्लॉग में जैसे ही अगला अपडेट तंयार होगा तो निसंदेह दीखाई देगा.
धन्यवाद.

Friday 30 July 2010

हिंदी भाषा का इतिहास - I

हिंदी शब्द हिंदी भाषा का या खड़ी बोली का नहीं है. इसकी उत्पत्ति 'सप्त सिन्धु -> हिन्दू से हुई है.
हिन्दू शब्द का मूल संस्कृत साहित्य में पाया जाता है. ऋगवेद में भारत को सप्त सिन्धु का देश कहा गया है अर्थात सात महान नदियों का देश. सिन्धु का प्रयोग यहाँ पर नदियों और हिंद महासागर के सन्दर्भ में प्रयुक्त हुआ है न कि केवल सिन्धु नदी के लिए. वैदिक संस्कृत में, प्राचीन शब्दकोशों के अनुसार, 'स' का उच्चारण 'ह' के रूप में होता है और इसलिए सप्त सिन्धु का उच्चारण हप्त हिन्दू के रूप में हुआ और यहीं से हिन्दू शब्द कि उत्पत्ति हुई. प्राचीन पर्सियन भी भारत को हप्त हिन्दू ही उच्चारित करते थे जैसा कि उनके प्रतिष्ठित साहित्य "Bem Riyadh" में भी अंकित है.इसी कारण से कुछ विद्वानों का विश्वास था कि हिन्दू शब्द का जन्म पर्सिया में हुआ था. ग्रीस के निवासी जिन्होंने भारत पर सिकंदर (alexandar) के रूप में आक्रमण किया था उन्होंने हिन्दू (Hindu) शब्द से ह(H) हटा दिया और उसे Indoos और Indus उच्चारित किया जिससे इंडिया (India) शब्द की उत्पत्ति हुई. 

'सप्त सिन्धु' नदियों का देश हिंद या इंडिया कहलाया और इस देश के निवासी हिंदी कहलाये. याद करें..............इकबाल का वो तराना.........'हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा' अमीर खुसरो ने भी लिखा है --- " बादशाह ने हिन्दू को तो हाथी से कुचलवा डाला, किन्तु मुसलमान जो हिंदी थे, सुरक्षित रहे."

इस प्रकार हिंदी शब्द की उत्पत्ति 'हिन्द देश के वासियों' के अर्थ में हुई. आगे चल कर यह शब्द 'हिन्द की भाषा' के अर्थ में भी प्रयुक्त होने लगा.

'हिंदी' शब्द जिसकी उत्पत्ति 'हिन्द + ई' = 'हिंदी'  के रूप  में मूल शब्द 'हिन्द' में निसवत का प्रत्यय 'ई' जोड़ कर हुई है,

आरम्भ में दो सामान्य अर्थो में प्रचलित रहा है ------ पहला, हिन्द देश के निवासी और दूसरा, हिन्द की भाषा .
किन्तु अब यह शब्द इन दोनों के आरंभिक अर्थों से पृथक हो गया है.

इस देश की निवासियों को अब कोई 'हिंदी' नहीं कहता . यहाँ के निवासी अब भारतवासी, भारतीय, हिन्दुस्तानी लोग कहलाते हैं. 

इस प्रकार, इस देश की व्यापक भाषा के अर्थ में भी अब 'हिंदी' शब्द का प्रयोग नहीं होता, क्योंकि भारत में अनेक भाषाएँ और बोलियाँ हैं जैसे 'पंजाबी, तमिल, गुजरती आदि जो सभी हिंदी  नहीं कहलाती. इन्हें हिंदी के बजाये 'भारतीय या भारत की भाषाएँ' कहा गया.
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सहायक ग्रन्थ सूची :

राज भाषा हिंदी - डॉ मालिक मोहम्मद
इन्टरनेट : 
http://www.hindubooks.org/david_frawley/myth_aryan_invasion/sanskrit/page1.htm(15 July 2010)