Sunday 17 October 2010

हिंदी भाषा का इतिहास - IV : लिपि

लिपि (Script) एक प्रकार से कुछ संकेतों का बंडल है जिसका उपर्युक्त प्रयोग लेखन क्रिया (Writing System) में किया जाता है. दूसरे शब्दों में श्रव्य ध्वनियों (भाषा) को द्रश्य रूप देने वाली प्रतीक व्यवस्था लिपि कहलाती है.
    वास्तव में भाषा के बाद मनुष्य का श्रेष्ठ अविष्कार लेखन ही है. आज संसार में लगभग चार सौ से अधिक लिपियाँ हैं और सभी अपनी अपनी लिपि को ही प्राचीन, महत्वपूर्ण, पूर्ण और ईश्वर निर्मित ही के कारण पवित्रतम मानते हैं. अपने यहाँ जैसे लिपि की निर्माता ब्रह्मा जी माने गए हैं. अत: भाषा की ही भांति लिपि का इतिहास भी अनुमाश्रित ही है परन्तु आदि काल में मनुष्य को कुछ न कुछ लेखन कला जरूर आती थी. उद्धरण के लिए हनुमान जी ने सीता जी को मनोहर राम-नाम अंकित मुद्रिका दिखाई थी. सीता जी ने राम की लिखाई पहचान ली होगी तभी वानर पर विश्वास किया.
इसके अतिरिक्त पंडित राजबली पांडेय जी ने इंडियन पेलिओग्राफी में एवं अनन्य में भरा में लिपि-विकास का सविस्तार वर्णन किया है. जिसका सार-संक्षेप यों है :
-- ह्वेनसांग (६३०-६४४ इ) भारत से लगभग ६५० पुस्तकें लादकर ले गया था जिसको लिखने में कई शताब्दियाँ लगी होंगी.
-- इंडिका में मेगस्थनीस (चौथी शताब्दी इ. पूर्व) गवाह हैं की यहाँ प्रस्तर फलकों पर खोदकर लिखा जाता था और जन्मपत्रियाँ बनाई जाती थीं.
-तीसरी शताब्दी ई पूर्व के अशोक के दसियों स्तम्भ लेख और शिलालेख उपलब्ध हैं जो भारत की लेखन कला के जीते जागते प्रमाण हैं.
-वैदिक साहित्य विश्व का प्राचीनतम साहित्य है जो आज भी यथावत रूप में उपलब्ध है. लिपि के अभाव में उसे इतनी उम्र नहीं मिल सकती थी.
-ऋग्वेद (६ / ५३ / ७) में आरिख पद मिलता है जो आलेख अर्थात लिपि का ही अपर नाम है.
        इसके अतिरिक्त लौकिक साहित्य में भी कम संकेत नहीं. रामायण में, जैसा पूर्व में कहा गया कि अंगूठी राम-नाम से अंकित थी -  "रामनामांकित चेदं पश्य देव्यंगुलीयकम"
समग्र वाड्मय को देखने से पता चलता है कि प्राचीन भारत में मुख्यतया तीन लिपियाँ प्रचलन में थीं
(i) सैन्धव लिपि
    १८५६ में जनरल कनिघम ने हड़प्पा कि यात्रा के दौरान सिन्धु - लिपि में लिखी कुछ मुहरें प्राप्त की थीं)
(ii) ब्राह्मी लिपि
    यह भारतवर्ष के आर्यों का अपनी खोज से उत्पन्न किया हुआ मौलिक आविष्कार है इसकी प्राचीनता और सर्वांगसुन्दरता के कारण इसके कर्ता ब्रह्मा जी को माना गया है और इसीलिए यह ब्राह्मी लिपि कहलाई. ई0 पूर्व पांचवी शताब्दी से नौ सौ वर्षों तक प्राप्त भारतीय शिलालेख बाएं ओर से दायें ओर लिखी जाने वाली ब्राह्मी लिपि ही है.
(iii) खरोष्टि लिपि
    ब्राह्मी लिपि के साथ साथ खरोष्टि लिपि भी भारत की प्राचीनतम लिपि है. इ पूर्व तीसरी शताब्दी में भारत के उत्तर पूर्व सीमान्त प्रान्त के आस पास यह गंधार प्रदेश में प्रचलित थी
                      देव नागरी अथवा नागरी लिपि भारत की प्राचीन लिपि ब्राह्मी की ही सर्वश्रेष्ठ संतान है. जिसमे आज संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली आदि भाषाएँ लिखी जा रही हैं और जिनका उपयोग दिन-ब-दिन बढता ही जा रहा है. "नागरी अंक और अक्षर एवम भारतीय प्राचीन लिपिमाला"  में ओझा जी लिखते हैं
"जिनको प्राचीन लिपियों का परिचय नहीं है, वे सहसा यह स्वीकार नहीं करेंगे की हमारे देश की नागरी, शारदा, गुरुमुखी, बंगला, उड़िया, तेलुगु, कन्नड़, तमिल, आदि समस्त लिपियाँ एक ही मूल लिपि ब्राहमी से निकली हैं"

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सहायक ग्रन्थ सूची :

हिंदी साहित्य का संछिप्त इतिहास - NCERT - कक्षा १२
हिंदी सही लिखिए : डॉ रामरजपाल द्विवेदी
नागरी अंक और अक्षर एवं भारतीय प्राचीन लिपि माला : ओझा
इंडियन पेलिओग्राफी : ए एच दानी
इंडियन पेलिओग्राफी : डॉ राजबली पांडेय
इन्टरनेट : 
http://www.hindubooks.org/david_frawley/myth_aryan_invasion/indus_writing/indus_writing.htm(21 Sept 2010)

1 comment:

  1. आपका यह प्रयास सर्वविधि प्रशंसा का अधिकारी है।

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