Tuesday 28 September 2010

नवी कक्षा

नवी कक्षा : दिनांक २६ सितम्बर २०१० दिन रविवार

जैसा की तय था, आज की कक्षा चित्रा जी ने बड़े ही सुन्दर ढंग से पूरी करवाई. बच्चों को कुछ और व्यंजनों के उच्चारण और लेखन का अभ्यास करवाया गया. चित्रा जी ने टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) और पवर्ग (प, फ, ब, भ, म) का बच्चों को अभ्यास कराया. इसके साथ ही अब तक हम अपनी हिंदी कक्षा में निम्नलिखित स्वर और व्यंजनों के लेखन और उच्चारण का अभ्यास कर चुके है.
स्वर
              अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, अं, अ:
व्यंजन
              क, ख, ग, घ, ड़        (कवर्ग)
              च, छ, ज, झ, ञ       (चवर्ग )
              ट, ठ, ड, ढ, ण         (टवर्ग)
              त, थ, द, ध, न         (तवर्ग )
              प, फ, ब, भ, म        (पवर्ग )

और जिन व्यंजनों के उच्चारण और लेखन का अभ्यास बच गया है वे हैं.....
              य, र, ल, व        
              श, ष, स, ह
              क्ष, त्र, ज्ञ     

अपनी अगली दो कक्षाओं में हम कोशिश करेंगे कि यवर्ग और संयुक्त व्यंजनों को करवाया जा सके.

परन्तु आज की कक्षा के बाद एक बच्चे के अभिभावक का कक्षा के बारे में बड़ा ही उचित विचार आया कि बच्चों को यह स्वर और व्यंजनों का लेखन बड़ा ही कठिन और बोरिंग लग रहा है अत: यदि हो सके तो अपनी इस हिंदी कक्षा को कुछ और मनोरंजक और सुगम बनाया जा सके तो अच्छा होगा. सबसे पहले तो हम उन अभिभावकों की प्रतिपुष्ठी (फीडबैक) का स्वागत करते हैं और धन्यवाद देते हैं की उन्होंने हमारा मार्ग दर्शन किया. इस सलाह को ध्यान में रख कर हम लोग कक्षा में कुछ और क्रियाकलाप को सम्मिलित करेंगे और बच्चों में हिंदी के प्रति उत्साह लाने का प्रयास करेंगे. अगली कक्षा कि जिम्मेदारी मेरी है और हम कोशिश करेंगे कि बच्चे अपना खोया हुआ उत्साह पुनः प्राप्त  कर सकें.जैसा मैंने अपने एक पिछले ब्लॉग में भी कहा था कि बच्चे कभी भी कुछ भी कह सकते हैं और वह भी बिना किसी राग लपेट के, इसलिए उनकी इस भावनाओं को समझना हम अध्यापकों और अभिभावकों का कर्त्तव्य है.

अंत में, आज चित्रा जी का अपनी हिंदी कक्षा में अंतिम दिन था. चित्रा जी दो माह की लम्बी छुट्टियों में जा रही हैं अत: वे कक्षा नहीं ले सकेंगी. अध्यापन की दृष्टी से अब यह जिम्मेदारी मुझे अकेले ही उठानी होगी, कम से कम तब तक जब तक कि चित्रा जी के व्यकल्पिक अध्यापक की खोज न हो जाये.चित्रा जी को बहुत बहुत धन्याद कि वे अध्यापन के इस पुनीत कार्य में साधक बन सकीं. 
धन्यवाद

Tuesday 21 September 2010

आठवी कक्षा

आठवी कक्षा : दिनांक १९ सितम्बर २०१० दिन रविवार

आज एक संक्षिप्त नैतिक कहानी के साथ कक्षा की शुरुआत हुई.
आज की कक्षा में हमने ७ व्यंजनों त, थ, द, ध, न, प, फ का अभ्यास बच्चों को कराया. आज शुरू से मेरे मन में था की थोडा तेज अभ्यास करेंगे और बच्चों ने भी इसमें सहयोग किया. उनकी गति भी अनुकूल थी थोडा तेज पढ़ने के लिए. परन्तु अंत आते आते मुझे यह अहसास होने लगा था कि कक्षा उत्साह वर्धक नहीं रह गयी और बच्चों का मन अब और अभ्यास में नहीं लग रहा है.  कुछ बच्चे तो इतने स्पष्ट थे कि उन्होंने मुझे कह ही दिया कि अब बस बहुत हो गया और हमें घर जाना है. यह सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा कि बच्चे जो भी होता है वह साफ़ साफ़ कह देते हैं बिना किसी राग लपेट के.
सारांश में यह समझ में आया कि कुछ बच्चे तो बड़ी ही अच्छी गति से सीख रहे हैं परन्तु कुछ बच्चों की सीखने की गति अभी  भी चिंता जनक है. हम शिक्षकों को और साथ में उनके माता - पिता को भी शायद और अभ्यास करना है कि कैसे उन बच्चों के सीखने कि गति को बढाया जा सके.
आज शायद कुछ सम्वादहीनता के कारण टवर्ग वर्णमाला (ट, ठ, ड, ढ, ण) छूट गयी और हमने त, थ इत्यादि  से शुरू करवा दिया. अत: यदि  अगली  कक्षा में टवर्ग वर्णमाला और कुछ और व्यंजन हो सकें तो बहुत ही अच्छा होगा.
कक्षा  का समापन "गायत्री  महामंत्र "के साथ हुआ . आज शायद  कम्युनिटी  सेंटर  में गणपति विसर्जन का कार्यक्रम  था अत:  कक्षा के अंत समय में थोडा कोलाहल  सा  प्रतीत  हो रहा था और बच्चे भी थोडा उलझे हुए से लग रहे थे.
कुल मिलाकर बड़ा आनंद आया बच्चों के साथ उत्कृष्ट समय गुजार कर और उनसे बहुत कुछ सीख कर.अगले सप्ताहांत में कुछ व्यक्तिगत व्यस्तताएं  हैं जिसकी  वजह से में कक्षा में शायद उपस्थित न रह सकूँ.
धन्यवाद

Saturday 18 September 2010

हिंदी भाषा का इतिहास - III : भाषा

भाषा शब्द संस्कृत का है जिसकी उत्पत्ति व्यक्तवाणयर्थक 'भाष' धातु से है परन्तु लोक-व्यवहार में इसका प्रयोग अत्यंत व्यापक अर्थ में किया जाता है-' दूसरों तक अपना अभिप्राय पहुँचाने का साधन - कैसी भी मूक अथवा मुखर '.
मूक साधन वो हैं जिनमे वाणी का प्रयोग बिलकुल नहीं होता है. ऐसे साधन भी दो प्रकार के माने गए हैं - इंकित और संकेतमय.
इंकितमय साधनों में विभिन्न प्रकार की आंगिक चेष्टाएँ आती हैं यथा ऑंखें मटकाना, पैर पटकना और गर्दन हिलाना इत्यादि. संकेतमय साधन अंग-वाह्य होते हैं. इन संकेतों में आज भी अभिप्राय-प्रेषण की क्षमता मौजूद है जैसे सिपाही का सिटी बजाना, रेलवे गार्ड की हरी-लाल झंडी, चुराहे की लाल-पीली-हरी बत्ती इत्यादि. कहने की आवश्यकता नहीं कि इन मूक साधनों से एक सीमा तक ही अपनी बात पहुचाई जा सकती है.

इसी प्रकार से मुखर साधन (जिसमे वाणी का प्रयोग होता है) भी अव्यक्त और व्यक्त दोनों तरह के होते हैं.
अव्यक्त साधन मानवेतर पशु-पक्षी और जीव-जंतु द्वारा अपने जाते हैं जैसे किसी भी समय यह देखा जा सकता है की शत्रु पक्षी / पशु को निहार कर पक्षी और पशु विशेष प्रकार की ध्वनि करते हैं जिससे अन्य पक्षी और पशु चौकाने होकर वो ही ध्वनि निकालने लगते हैं.

व्यक्त वक् केवल मनुष्य की है. जिसका स्वरुप निश्चित है, जिसकी संरचना सर्व स्वीकृत है. अत: सीखना और सीखाना तनिक से श्रम से ही संभव है तथा जिसका अध्धन -विश्लेषण संभव है. इस वाक् में भी निरर्थक ध्वनियाँ हो सकती हैं. भाषा विज्ञान की अध्येय वाक् सार्थक ध्वनि समूह हिया. वो ही 'भाषा' है.

बाबु श्याम सुन्दर दास जी ने कहा है "विचार की अभिव्यक्ति के लिए व्यक्त ध्वनि संकेंतो के व्यवहार को ही भाषा कहते हैं (भाषा रहस्य, प 43)    
ए एच गार्डिनर कहते हैं - 'विचाराव्यक्ति के लिए व्यक्त ध्वनि संकेंतो का प्रयोग भाषा कि सर्वमान्य परिभाषा है. (स्पीच और लैंगग्वज)भाषा के  विभिन्न रूप - यों तो भाषा के अनेकानेक रूप हैं, या कहो जितने व्यक्ति हैं, भाषा के उतने ही प्रकार हैं. फिर भी सामान्यत: उनके निम्लिखित रूप प्रचलित हैं.

(i) व्यक्ति-बोली (ईडियोलेक्ट) - भाषा का यह लघुतम रूप है. अपने परिवेश, संस्कारों और स्तर के हिसाब से व्यक्ति की बोली में एक प्रकार की विशेषता आ जाती है. इसी कारण से एक व्यक्ति कि बोली दूसरे व्यक्ति से भिन्न हो जाती है.

(ii) बोली (सब-डाईलेक्ट) - छोटे से क्षेत्र की व्यक्ति-बोलीओं का सामूहिक रूप बोली है. यह नितांत स्थानीय है जिसमे साहित्यिक रचनाएँ नहीं होती हैं.

(iii) उपभाषा / विभाषा (डाईलेक्ट) - एक प्रान्त के बोल चाल की और साहित्यिक रचना की भाषा विभाषा कहलाती है. एक विभाषा में अनेकों बोलियाँ हो सकती हैं. हिंदी भाषा है, कड़ी बोली, ब्रज, अवधी, भोजपुरी आदि विभाषाएं, जिनके अंतर्गत अनेकों बोलियाँ हैं जैसे मेरठ की बोली, सहारनपुर की बोली, मथुरा की बोली, एटा की बोली आदि आदि. जब विभाषा में साहित्य प्रभूत मात्र में रच जाता है तब वो भाषा की पदवी पा लेती है जैसे ब्रजभाषा, अवधी या आज की खड़ी बोली.

(iv) मानक भाषा (स्टैन्डर्ड भाषा)-  इसी को आदर्श या मानक भाषा कहते हैं. व्याकरण की नज़र से यह एकरूपा होती है. होती तो यह भी आरम्भ में विभाषा ही परन्तु अपनी साहित्यिक श्रेष्टता के कारण अपनी सहोदर विभाषाओं पर श्रेष्टता स्थापित कर सब के लिए आदर्श बन जाती है. बाबु श्याम सुन्दर दास इसीलिए इसे 'कई विभाषाओं में व्यवहृत होने वाली शिष्ट-परिग्रहित विभाषा' कहते हैं (भाषा विज्ञान, प २३). 

(v) राष्ट्र भाषा (नेशनल लैंगग्वज) और राज भाषा (अफिशल लैंगग्वज) : मानक भाषा जब अनेकों क्षेत्रों में अभिव्यंजन का माध्यम बन जाती है तब वो राष्ट्र भाषा कहलाती है. सामान्यतः इसी में सरकारी काम काज होता है तब यह राज भाषा  कहलाती है.
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सहायक ग्रन्थ सूची :
हिंदी साहित्य का संछिप्त इतिहास - NCERT - कक्षा १२
हिंदी सही लिखिए : डॉ रामरजपाल द्विवेदी

Thursday 16 September 2010

सातवी कक्षा

सातवी कक्षा : १२ सितम्बर २०१० दिन रविवार

आजकल यहाँ कम्युनिटी सेंटर में गणपति उत्सव की हलचल है. अत: बच्चों के साथ गणपति महोत्सव  पर चर्चा  हुई .आज की कक्षा की जिम्मेदारी चित्रा जी पर थी और बहुत ही सुन्दर ढंग से आप ने अगले कुछ व्यंजनों च, छ, ज, झ, ञ का बच्चों  को  अभ्यास  कराया . हमारा प्रयास रहेगा कि हम अगली कक्षा में इसके आगे के ६ या ७ व्यंजन करवा सकें .

चित्रा जी ने ब्लैक बोर्ड पर व्यंजन लिखे और छात्रों  से बारी- बारी से उच्चारण करवाया. फिर कुछ छात्रों ने ब्लैक बोर्ड  पर व्यंजन लिखने का अभ्यास किया. इस बात पर काफी जोर दिया कि जब वह घर पर अभ्यास करेगे दो उनकी सीखने की गति तीव्र हो सकेगी और वे शब्द शीघ्र सीख सकेंगे. उनके माता पिता को भी इस बात का स्मरण कराया और यह भी बताया गया कि अगली कक्षा में और अन्य व्यंजन कराये जायेंगे.

अंतिम के कुछ समय में बच्चों ने अपनी पसंद के दो  गीत गए. साथ में यह तय किया गया कि एक गीत "हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें ........." को गाने का हमारी हिंदी कक्षा में प्रयास किया जायेगा . यह बहुत ही सुन्दर बात है की बच्चे अब अपनी तरफ से कक्षा में भाग ले रहे हैं और उनके माता पिता उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं. इसप्रकार बच्चे हिंदी भाषा में अपनी पसंद को कक्षा के और बच्चों के साथ बाँट रहे हैं. बच्चों की शिक्षा में इस प्रवृत्ति का हमेशा ही अच्छा असर दिखाई देता है.

अंत में आप सभी को भी गणपति उत्सव की शुभ कामनाएं .
धन्यवाद

Sunday 5 September 2010

छ्टी कक्षा

छ्टी कक्षा  : ०५ सितम्बर २०१० दिन रविवार

आज अध्यापक दिवस है. यह दिन भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली  राधाकृष्णन का जन्मदिन है और यह भारत के स्कूलों में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है. आज के दिन स्कूलों में अध्यापक गणों का समस्त स्कूल की तरफ से सम्मान कार्यक्रम का आयोजन होता है. आज जब स्कूलों और विश्वविधयालयों में अनुशासन हीनता इस कदर बढ़ गयी है की छात्र अपने अध्यापकों का सम्मान भी करना भूल चूका है तब इसका महत्त्व सारे संसार के लिए आज भी बड़ा ही प्रासंगिक है. अत: हमने आज के कक्षा में बच्चों को इस उत्सव के बारे में संक्षेप में बताया गया.
साथ में आज बच्चों के साथ एक और महत्वपूर्ण उत्सव जन्माष्टमी पर भी संक्षिप्त चर्चा की. बच्चों को बताया गया की जन्माष्टमी का उत्सव भगवान् श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में सारे विश्व में मनाया जाता है.

इसके अतरिक्त आज मैंने कक्षा में पूर्व में किये हुए व्यंजनों का संक्षिप्त पुन: अवलोकन के बाद चार और व्यंजन पढाये और वे हैं ग, घ, ड़, च . इनके लेखन और उच्चारण का भी अभ्यास कराया गया. बच्चे जो थोड़े छोटे हैं उन्हें परेशानी हो रही है वर्णों के लेखन में. बड़े बच्चे भी संतुलित और एक सा बार बार लिखने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं. ऐसा इस लिए भी शायद हो रहा है क्योंकि बच्चे घर पर बिलकुल भी अभ्यास नहीं कर रहे हैं. मेरा पूरा विश्वास है की यदि उन्हें हफ्ते में २ घंटे भी घर पर प्रयास करा दिया जाये तो वे बहुत आछा करेंगे.

इस प्रकार से अभी तक हम लोगों ने कुल ६ व्यंजन करवाए हैं. पुन: कक्षा तेज गति से पढ़ने की अब अवश्यकता है क्योंकि ३४ व्यंजनो को पूरा करने में इस गति से काफी समय लग जायेगा. अब हम कोशिश करेंगे की कक्षा में कम से कम ७ व्यंजन हम करवा सकें ताकि अनुमोदित समय सारणी के अनुसार हम कक्षा को दिसम्बर तक एक गंतव्य तक पहुंचा सकें.

अंत में मैंने बच्चों को www.hindigym.com की वेब साईट के बारे में पुन: बताया और अगले सप्ताह गृह कार्य के लिए इस वेब साईट पर उपलब्ध इन चार नए वर्णों की कार्य शीट पर और अभ्यास कर के लाने के लिए कहा  है

जैसा मैंने आपसे पहले कहा था उस के अनुसार में इस ब्लॉग में हिंदी कक्षा का अनुमोदित कार्यक्रम संलग्न कर रहा हूँ. आशा है यह सूचना वर्धक होगा. अब बच्चों के माता- पिता इस कार्यक्रम के अनुसार अपने बच्चों को कक्षा में आने से पहले कुछ अभ्यास करवा सकते हैं. यह बहुत उपयोगी होता है जब आप कक्षा में कुछ पूर्व अभ्यास के साथ आयें. ऐसे में कक्षा में कुछ ज्यादा समझ में आता है और विषय पर चर्चा उपयोगी भी होती हैं.
अभिवादन के साथ
धन्यवाद.