Saturday 21 August 2010

हिंदी भाषा का इतिहास - II

भारत की सभी आर्यभाषाओं की तरह हिंदी का जन्म और विकास भी भारतीय प्राचीन आर्यभाषाओं से हुआ है. विद्वानों ने सामान्य रूप से भारतीय भाषा के विकास क्रम को तीन भागों में विभाजित किया है
(अ) प्राचीन भारतीय भाषा (१५०० ई० पूर्व से ५०० ई० पूर्व तक)
(आ) मध्य कालीन  भारतीय भाषा (५०० ई० पूर्व से १०००  ई० तक)
(इ) आधुनिक भारतीय भाषा (१००० ई० से अब तक)

संस्कृत भारतीय आर्यभाषाओँ के विकास की प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है. यह भाषा देववाणी नाम से भारत ही नहीं, अपितु विश्व के एकाधिकार देशों में सम्मानित पद पर शोभायमान रही है.

डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का यह कथन महत्वपूर्ण है
"हिमालय के सेतुबंध तक, सारे भारतवर्ष के धर्म , दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा आदि विषयों की भाषा कुछ १०० वर्षों पहले तक एक ही रही है. यह भाषा संस्कृत थी. भारवर्ष का जो कुछ शेष और रक्षा योग्य है वो  यह भाषा की भण्डार में संचित किया गया है. इसके लक्षाधिक ग्रंथों के पठन पाठन और चिंतन में भारतवर्ष के हजारों पुश्त तक के करोंडो सर्वोतम मस्तिस्क दिन रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं. मैं नहीं जानता की संसार के किसी देश में, इतने काल तक, इतनी दूर तक व्याप्त इतने उत्तम मस्तिस्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं, शायद नहीं."

प्राचीन भारतीय आर्यभाषा में संस्कृत के दो रूप मिलते हैं : वैदिक और लौकिक . वैदिक संस्कृत का सर्वोतम स्वरुप ऋग्वेद की साहित्यिक भाषा में मिलता है. वैदिक भाषा के धीरे धीरे परिवर्तित होने के कारण उसमे जनभाषा के लक्षण निरंतर आते गए. परिणामस्वरूप लौकिक संस्कृत का जनम हुआ. इस भाषा के रूप को स्थिर करने के लिए ही प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनि को 'अषअध्याय' (Astaadhaya) की रचना करनी पड़ी.

संस्कृत भाषा के विकास के बाद के काल को हिंदी भाषा का मध्य कालीन युग कहा गया. इस काल की सभी भाषों में संस्कृत कहीं न कहीं मूल में दिखाई देती है.. उदाहरण के लिए पाली भाषा का "धम्म" और "कम्म" का उपयोग संस्कृत भाषा के "धर्म:" और "कर्म: " जैसा ही दिखाई देता है.

भाषा का प्रवाह धारा के प्रवाह के सामान होता है. कबीरदास जी कहते हैं.......
"संस्कृत कबीरा कूप जल, भाषा बहता नीर".

ठोस वस्तुवों की तरह उसका विभाजन संभव नहीं. फिर भी क्रमानुसार पाली, शौरसेनी, प्राकृत, नगर अपभ्रंश अपने अपने समय  में अखिल भारतीय जनसंपर्क की भाषा के गौरवमय पद को शुशोभित करती रही है. मध्य कालीन (५०० ई० पूर्व से १००० इ० तक ) भारतीय आर्यभाषाओँ के विकास क्रम को तीन भागों में सामान्य रूप से रखते हैं:पाली युग ; प्राकृत युग ; अपभ्रंश युग .

पाली का अर्थ है "पाठ"  और ध्यान से देखने से पता चलता है की बौद्ध धर्म का साहित्य पाली में ही लिखा हुआ है.

प्राकृत का अर्थ है "सहज"और यह बहुत से आधुनिक हिंदी उपभाषाओं की मूल भाषा है जैसे कुछ लोग अर्धमागधी, शौरसेनी, इत्यादि भाषाओँ की जनक प्राकृत को ही मानते हैं. जैन धर्म का साहित्य प्राकृत में रचित है. प्राचीन भारत में यह आम नागरिक की भाषा थी और संस्कृत अति विशिष्ट लोगों की भाषा थी.

अपभ्रंश का अर्थ है "दूषित" अर्थात जो शुद्ध ना हो. यह भाषा ही आधुनिक हिंदी भाषा के मूल में है. उदाहरण के लिए  पश्चिम प्रदेश  की भाषा (उर्दू, पंजाबी आदि) के मूल में शौरशेनी अपभ्रंश  है, और मराठी, कोंकणी के मूल में महारास्त्री अपभ्रंश है.गुजराती, राजस्तानी आदि के मूल रूप में नगर अपभ्रंश है.

यहाँ एक बात समझ लेना आवश्यक है की अपभ्रंश की भाषा रूप में यद्यपि अलग सत्ता है, किन्तु, वो संस्कृत, पाली और प्राकृत की अपेक्षा हिंदी के व्याकरणिक ढांचे और शब्द भंडार के बहुत निकट है.अपभ्रंश को इसीलिए 'पुरानी हिंदी' भी कहा जाता है. इस प्रकार अपभ्रंश को मध्य कालीन और आधुनिक कालीन भाषाओँ के बीच के कड़ी माना गया है. अपभ्रंश के ही अतिशय यह देसी रूप और भेद विभिन्न आधुनिक भारतीय भाषाओँ के रूप में विकसित हुए. प्रमुख आधुनिक भारतीय भाषाओँ में हिंदी के अतिरिक्त असमिया, उड़िया, गुजरती, पंजाबी, बंगला, मराठी और सिन्धी की भी गिनती की जा सकतीहै.

हिंदी के अंतर्गत उन सभी बोलियों और उपबोलियों को सम्मिलित किया जा सकता है जो हिंदी प्रदेश में बोली जाती हैं. वास्तव में हिंदी कुछ बोलियों और उपबोलियों का सामूहिक नाम ही है. हिंदी की विभिन्न बोलियों को सामान्य रूप में निम्नलिखित पांच भागों में विभक्त किया गया है.

(i) पश्चिमी हिन्दी (खड़ी बोली, ब्रज, कन्नौजी, हरियानी या बांगरू)
(ii) पूर्वी हिन्दी (अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी)
(iii) राजस्थानी हिंदी (मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाड़ी, मालवी)
(iv) पहाड़ी हिंदी (नेपाली, कुमायूनी, गढ़वाली, चमोली, क्योंठाली, कुल्लई, जौनसारी, सिरमौरी)
(v) बिहारी हिंदी (मैथिली, मगही, भोजपुरी)

इस प्रकार हिंदी के विस्तृत प्रदेश में पांच उपभाषाओं और सत्रह बोलियों का व्यवहार होता है. हिंदी के विस्तृत निजी  क्षेत्र हरियाणा,राजस्थान, हिमांचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार और मध्य प्रदेश का सम्मिलित एक विस्तृत भूभाग है. बहुत सी उपभाषाएं प्रचलन में रही, उन्ही में से एक मुख्य भाषा ब्रज थी जिसका स्थान उन्नीशवी शताब्दी में खड़ी बोली ने लिया.
वर्तमान में बोली जाने वाली हिंदी भाषा इस खड़ी बोली का ही एक रूप है.
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सहायक ग्रन्थ सूची :
राजभाषा हिंदी - डॉ मालिक मोहम्मद
हिंदी साहित्य का संछिप्त इतिहास - NCERT - कक्षा १२
इन्टरनेट : 
http://charm.cs.uiuc.edu/~bhatele/hindi/hindi_intro.htm (01 Aug 2010)
http://www.rootsweb.ancestry.com/~lkawgw/pali.html (12 Aug 2010)
http://jainhistory.tripod.com/prakrit.html (14 Aug 2010)

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