Tuesday 7 December 2010

मेरी छुटियाँ

मेरी छुटियाँ : दिनांक १९ नवम्बर २०१० से ५ दिसम्बर २०१० तक
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जैसा मैंने अपने पिछले ब्लॉग में लिखा था की मैं कुछ सप्ताहांतों के लिए छुट्टियों में जा रहा हूँ. अत: मेरी छुटियाँ समाप्त हुईं और में वापस इस ब्लॉग के माध्यम से आप लोगों के बीच पुनः उपस्थित हूँ. मेरी भारत यात्रा बहुत ही सुखद रही और परिवार, मित्रों और समाज के अन्य वर्ग से लोगों से भी अच्छा संपर्क हो सका. परन्तु मेरी वापस यात्रा के दौरान मुझे जो अनुभव हुआ वह मैं जरूर आप लोगों के जानकारी में लाऊंगा. जैसा की आप लोगों को शायद मालूम ही होगा की नयी दिल्ली हवाई अड्डे पर एक नया टर्मिनल बना है, टर्मिनल तीन, जो पिछले दिनों अपनी आधुनिक सुविधाओं और दिखावटी सुन्दरता के लिए बहुत चर्चा में रहा. अपनी वापस की यात्रा के दौरान मेरा हवाई जहाज़ टर्मिनल तीन से ही जाना था. अत: मैंने भी उसकी भव्यता के दर्शन किये. घूमते घूमते मेरे मन में एक हिंदी की पुस्तक खरीदने की इच्छा हुई जो में यात्रा के दौरान पढ़ सकूँ परन्तु आप को, मेरी ही तरह, यह जानकार आश्चर्य होगा की मुझे पूरे टर्मिनल में कहीं भी हिंदी की पुस्तक या उपन्यास नहीं मिला. फिर मैंने पूरे टर्मिनल का दौरा किया तो पाया की जैसे हम पर परोक्ष रूप से पाश्चात्य सभ्यता थोपी जा रही है और पूरा का पूरा सरकारी तंत्र इसमें जैसे मददत कर रहा हो कि कैसे भी हमारी युवा पीढ़ी जल्दी से जल्दी अपनी सभ्यता और संस्कृति के साथ साथ अपनी भाषा के प्रति भी उदासीन और अज्ञान बनी रहे. वहां पर हिंदी ही नहीं वरन भारत की किसी भी क्षेत्रीय अथवा उप भाषा की भी पुस्तकें उपलब्ध नहीं थें. अंग्रेजी कि तो बहुतायत में पुस्तकें थीं मगर भारतीय राज भाषा या क्षेत्रीय भाषा कि कोई भी पुस्तकें नहीं थीं. मेरी समझ में यह भारतीय भाषाओँ का अपनी ही भूमि और देश  में एक तरह का अपमान है. साथ ही वहां पर मैंने पश्चिम देशो की कंपनियां और उनके उत्पाद देखे मगर लगता था जैसे भारत में भारत की ही चीजें और वस्तुएं गायब हों. मैंने अपनी प्रतिक्रिया टर्मिनल के सूचना केंद्र में बैठे हुए महोदय से भी करवा दी और उन्होंने भी अपनी अनभिज्ञता और असमर्थता दिखाई. यह बहुत ही विचित्र तरह का व्यवसायिक उदारीकरण नहीं तो और क्या है जहाँ गाँधी जी के द्वारा पोषित और अनुमोदित घरेलु उद्योगों को प्राथमिकता और प्रोत्साहन न देकर सिर्फ मुनाफाखोरी के लिए व्यापार करना भर है. 
                         अब मैं यह ब्लॉग १२ दिसम्बर की अपनी हिंदी कक्षा के बाद ही अपडेट करूँगा. वैसे यह प्राथमिक हिंदी शिक्षा की अंतिम कक्षा होगी और इसके बाद हम लोग दिनांक १९ दिसम्बर को , याने उसके अगले रविवार को, एक छोटा सा कार्यक्रम करके इस कक्षा का समापन करेंगे. इस उत्सव में बच्चे राष्ट्रीय गान और एक छोटा सा हिंदी का नाटक करेंगे जिसके सारे संवाद हिंदी में ही होंगे. अत: में आपको अपने विगत दिनों में हुई यात्रा के अनुभव के बारे मैं सोचने के लिए छोड़े जा रहा हूँ और पुनः अगले ब्लॉग में मिलूँगा.

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