Monday 1 January 2018

सुनिए प्रधान मंत्री मोदी जी

प्रधान मंत्री मोदी जी आज अंग्रेजी का नया साल है और आपका सत्ता में भी लगभग ३ साल हो गया है. आपकी वाक् पटुता भी अब पुरानी सी  हो गयी. अब समय आ गया है की आपसे भी कुछ प्रश्न पूछे जाएँ. तो सोचा आज कुछ आपको याद करा दें की आप ने भारत की जनता से क्या वादे किये थे २०१४ के चुनाव के दौरान और उसके तुरंत बाद.  परन्तु सबसे पहले आपको और देश की जनता को हार्दिक शुभ कामनाएं नव वर्ष पर. 

सबसे ऊपर तो नाम आता है 'अच्छे दिन' और 'मौनी बाबा' का.  यदि याद न आ रहा हो तो थोड़ा विस्तार से....चुनाव जीतने के तुरंत बात (यदि मुझे सही याद पड़ता है तो ) सबसे पहले आपने बड़ोदरा (गुजरात) के विजय रैली में कहा था 'अच्छे दिन........ ' और जनता ने उत्तर दिया  था.....'आ गए'..... या यूँ कहें की आपने अपनी बात जनता के मुँह से कहलवाई थी की 'अच्छे दिन आ गए'. और दूसरी बात सारे चुनाव प्रचार के दौरान आपने तत्कालीन प्रधानमत्री डॉ मनमोहन सिंह जी को हमेशा मौनी बाबा का ही खिताब दिया था और आप कहते फिरते थे कि........ अरे भाई डॉ साहेब / प्रधानमत्री जी कुछ तो बोलिये....  

अच्छे दिन का तो मैंने बाद में थोड़ा विस्तार से विश्लेषण किया है और अगर मौनी बाबा का ध्यान किया जाये तो अभी हाल में मुंबई में भारत की युवा पीढ़ी के २१ लोग आग की भेंट चढ़ गए और आपकी एक ग्लैमरस लोक सभा सदस्या जी इसका कारण भारत की बढ़ती हुई जनसँख्या करार दे देती हैं. गौ हत्या के नाम पर कुछ सामाजिक तत्त्व गुंडा गर्दी करते फिर रहे हैं और आप मौन हैं. या फिर कुछ समय पहले रेलवे के एक पुल पर भगदड़ मचने से कुछ नागरिक अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं और आपके मुँह से एक शब्द भी  नहीं निकलता 

आज आप (गुजरात और हिमाचल चुनाव के दौरान ) कह रहे हैं की मैं नीच जाती का हूँ (श्री मणि शंकर अय्यर साहेब के अल्प या सिमित हिंदी भाषा के प्रयोग /ज्ञान पर चुटकी लेते हुए) या फिर लोगों को याद दिला रहे है कि कभी कांग्रेस का १८ राज्यों में सरकार थी और आपकी याने बीजेपी की अब १९ राज्यों में सरकार हो गयी है. क्यों मासूम भारतीय जनता का मन बहला रहे हैं.  यह आप भी और कोई भी समझ दार व्यक्ति समझता है कि अय्यर साहेब का अर्थ वह तो कतई नहीं था जो आपने जनता को समझया था. और उससे भी विशेष यह कि आपके कुछ भी कहने पर आप के ख़ास सिपहसालार, या कहें श्री अमित शाह जी और उनकी टीम जैसे बहुत सारे प्रोफेशनल राजनीतिक मैनेजर, शुरू हो जाते हैं उसका अर्थ और उनके भी अंदर का अर्थ बताने के लिए देश के सारे अखबार और टेलीविज़न चैनलों पर. 

इसके बात अगर और बातें याद ही कराई जाये तो उनमे 'परिवारवाद', 'काला पैसा', 'आदर्श गाव, गाय-गंगा ('नमामि गंगे'), 'स्वच्छ भारत', 'बुलेट ट्रैन,  'योग', 'मंदिर', 'स्वदेशी'  इत्यादि इत्यादि। ..... 

परिवारवाद, कांग्रेस के अध्यक्ष श्री राहुल गाँधी जी को आपने हमेशा राजकुमार कह कर पुकारा और डॉ मनमोहन सिंह को रबर स्टाम्प. मगर आपको याद दिला दें की बीजेपी में भी राजकुमारों का भी जलवा है, वह चाहे हिमाचल से हों,  कर्णाटक से, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश से हों या फिर पंजाब से. 

काला पैसा, डॉ मनमोहन सिंह जी की देश भक्ति पर प्रश्न उठाना आपको शोभा नहीं देता है. आपको अभी भी सिद्ध करना है की आपकी देश भक्ति डॉ मनमोहन सिंह जी देश भक्ति से बड़ी न सही तो समकक्ष तो अवश्य है. क्योंकि उनका एक अर्थशास्त्री के रूप में योगदान पूरे देश के विकास में अभी कोई भूला नहीं है. आप तो उन्हें पाकिस्तान के दूत से मिलने पर देश द्रोही तक करार देते हैं.  आप एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अभी भी काम कर रहे हैं और आपके योगदान का सम्पूर्ण देश के विकास के लिए आंकलन किया जाना बाकी है.

स्वच्छ भारत, एक बानगी, मेरा जन्म स्थान मूलतः लखनऊ शहर है. और अभी भी मैं नियमित रूप से भारत भ्रमण पर लखनऊ यदा कदा जाता हूँ और अभी हाल के लखनऊ प्रवास के दौरान में एक बच्चे को  लखनऊ के एक मुख्य बाजार, आईटी कॉलेज, में खुले में शौंच करते हुए देखा है. 

आदर्श गांव, अभी हाल के सर्वे मैं पता चला था की आपके ही पार्टी के संसद सदस्यों द्वारा केवल ७ प्रतिशत पैसा ही खर्च हो पाया है देश को उनकी ही लोकसभा क्षेत्र के आदर्श गांव के लिए मिले पैसे का. 

स्वदेशी, अमेरिका के इतने चक्कर आपके जैसे राष्ट्रवादी पार्टी द्वारा उचित प्रतीत नहीं होता और तकनीक कौशल और स्वरोजगार को बढ़ावा  देना निसंदेह आपेक्षित है. 

मंदिर, मैं स्वयं भी ९० के दशक में राम मंदिर आंदोलन से जुड़ा रहा हूँ और बीजेपी के पितामह श्री अडवाणी जी की रथ यात्रा के सूत्रधार के रूप में आपके योगदान और अनुशासन का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूँ. इसका कारण है कि हिन्दू बहुसंख्यक देश में भगवान् राम का मंदिर नहीं बन पाया तो विश्व में और कहाँ बनेगा. परन्तु यह क्या १९ राज्यों में सरकार बनाने के बाद भी मंदिर मुद्दे पर आपकी चुप्पी प्रश्न चिन्ह तो लगाएगी ना. और फिर क्या हुआ गाय - गीता और गंगा का. यह सोचने का विषय तो है ही. 

और योग तो ऐसा लगता है की शायद बाबा रामदेव अथवा बाबा बालकृष्ण की ही भारत को देन है तभी तो आज उनका व्यावसायिक क्षेत्रफल विश्व के बड़े बड़े उद्द्योग्पतिओं को अचंभित किये हुए हैं. ऐसा न हो कि भारत की एक अद्भुत और वैज्ञानिक देंन यूँही व्यावसायिक शोषण का शिकार हो जाये।  

बुलेट ट्रैन का तो कहना ही क्या, देखिये क्या होता है जब करोड़ों रुपये की लागत से बनने के बात वह कितनी सार्थक सिद्ध होती है यात्री सुविधाओं और लागत के सन्दर्भ में . यह भी सम्भावना है कि बुलेट ट्रैन निर्णय भी वर्तमान रेलवे के स्थिति और सुविधाओं को बढ़ाने या दुरुस्त करने के निर्णय के ऊपर फिस्सडी ही साबित हो. 

आपसे इन अच्छे दिनों की आशा नहीं है क्योंकि भारत की जनता ने बड़ी आशाओं से आपको भारत का एक आम आदमी समझ कर भारत के प्रधान मंत्री (या आपकी भाषा में प्रधान सेवक) के पद पर आसीन किया था. आपसे यह अपेक्षा थी की आप जो बोलेंगे और जो करेंगे उसमे हम, आम आदमी, अपनी जीवन की रोजमर्रा की समस्याओं का प्रतिबिम्ब देखेंगे परन्तु आपके हाल के चुनाव प्रचार के दौरान राजनितिक प्रपोगंडा से निराशा और हताशा हाथ लगी. कहाँ गया आपका विकास का मंत्र? आपका कभी भी लक्ष्य १९ राज्यों में सरकार बनाने का नहीं था, यह तो इंदिरा जी की कांग्रेस का था लक्ष्य और इसी को पाने के लिए भारत की शायद राजनीति भ्रस्ट और सत्ता लोलुप हो गयी थी और उसने आया राम और गया राम की संज्ञा प्राप्त की. 

यह समय हमारे भारत देश के लिए एक और संक्रमण का काल है, यानी ट्रांजीशन पीरियड।इसका मतलब है की भारत अब निश्चित रूप से विकसित देश बन रहा है. आप, प्रधान मंत्री (सेवक) जी,  इन सब स्वचालित गतिविधिओं का श्रेय नहीं ले सकते। इस संक्रमण काल में भी कुछ विकास की चीज़ें अपने आप हो रही हैं जिसमे आप के होने या किसी अन्य कर्तव्य निष्ट प्रधानमत्री के होने में कोई विशेष अंतर पड़ता नहीं दिख रहा है. यदि आप यह श्रेय लेते भी हैं तो यह वैसा ही होगा जैसा आजादी के बाद पंडित नेहरू ने सारा श्रेय अपने आप ही ले लिया था चाहे वह रेलवे की विस्तार नीति हो, भाकरा नांगल बांध से बिजली  उत्पादन की और या फिर तत्कालीन राज घरानो का भारतीय गणतंत्र में विलय का विषय .

आप तो अर्जुन और आचार्य द्रोण की चिड़िया की आँख की तरह अपनी दृष्टि अपने ही बनाये हुए लक्ष्यों पर जमाये रखिये तो निश्चित रूप से स्वचालित विकास की इस गंगा के स्वरुप को बनाने में आपके योगदान को भी एक प्रधान सेवक के रूप में याद किया जायेगा। भूलिए नहीं कि भारत के प्रधान सेवक से भारत की आम जनता की क्या आपेक्षाएँ हैं. 

इसलिए प्रधान मत्री जी मैं सिर्फ आगाह कर रहा हूँ क्योंकि लोकसभा के अगले आम चुनाव बहुत दूर नहीं हैं और हमारे देश की यह जनता कितनी भी धैर्यवान क्यों न हो इसका भी धैर्य चुकता है और कहीं आपको उसकी कीमत न चुकानी पड़ जाये और आप फिर से बीजेपी के वर्ष १९८० के लोकसभा चुनाव प्रदर्शन की ओर न चल पड़ें। यह भुलाने का भ्रम तो बिलकुल न रखियेगा कि आपका राजनीतिक विकल्प देश में नहीं है क्योंकि यही गलती शायद श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने की थी और उन्ही के सशक्त नेतृत्व के किले को कुशल प्रशाशक मोरारजी भाई और लोक नायक जय प्रकाश जी ने बड़ी ही  आसानी से ध्वस्त कर दिया था.


No comments:

Post a Comment