Thursday 14 December 2023

भारतीय संसद पर गैरकानूनी प्रवेश या फिर हमला

आज बहुत दिनों के बाद फिर लिखने का मन कर रहा है। विशेष रूप से जब हमारी जन्मभूमि के निर्वाचित प्रतिनिधियों को टीवी पर हाथ-पायी करते हुए देखा / पाया। मैं सोच रहा था कि जब राष्ट्रीय चुने हुए प्रतिनिधि मार पीट कर सकते हैं और कानून को हाथ में लेंगे तो देश के सामान्य नागरिक से क्या अपेक्षा है।

कल भारतीय संसद (निचले सदन) पर दो नवयुवक गैर कानूनी रूप से घुसे और सदन को रंगीन धुएं से भर दिया। इन युवाओं का कृत्य तो कानून देखेगा ही | मेरी राय में सभी संबद्ध लोगों को कानून के कड़े से कड़े रूप को दिखाना चाहिए और उन्हें कानून की ताकत का एहसास भी करवाना होगा। ताकी भविष्य में ये युवाओं को उनके गैर जिम्मेदार कृत्य के गंभीर परिणामो से रोबरूह हो सके।

मगर मेरा प्रश्न अपने राष्ट्रीय चुने हुए प्रतिनिधियों से है कि क्या उनकी ये जिम्मेदारी नहीं है कि वो सामान्य जनता को कानून का पालन करते हुए दिखायी दें | क्या उनका मार पीट का कृत्य शोभनिया था ये उनको सोचना है। क्योंकि जब पब्लिक ठीक से इसका विशलेषण करेगी तो वो सवाल भी पूछेगी कि आखिर ये सब हुआ कैसे और आपने कानून हाथ में कैसे ले लिया।

अभी और सत्य आना बाकी है क्योंकि जब कोर्ट में केस चलेगा तो परत दर परत आरोपी के मकसद का भी खुलासा होगा और ये भी पता चलेगा कि कैसे सुरक्षा में चूक हो गई।

अपनी रक्षा का कानून क्या इतना लचीला हो सकता है कि हम लोग आसानी से कानून को अपने हाथ में ले? जबकी किसी के जीवन पर कोई संकट ना पड़ रहा हो | क्या हमारे प्रतिनिधि उस युवा को केवल पकड़ नहीं सकते थे और मारना क्यों जरूरी था? सजा देने का काम तो कानून का है | हमारे सार्वजनिक प्रतिनिधि क्या ऐसा नहीं समझते? और कानून व्यवस्था की जिम्मेवारी क्या सरकार की नहीं होती है? क्या पूर्व धमकी की नजरंदाज तो नहीं किया गया सरकार द्वार अपने ओवर कॉन्फिडेंस में।

क्या कोर्ट हमारे प्रतिनिधियों के गैर कानूनी कृत्यों के लिए भी फैसला करेगा ?  क्या उनको हम और हमारा समाज कानून से ऊपर मान चुका है? ये सोचना मैं आपके विवेक पर छोडता हूं और ये भी आपके सोचने के लिए रखता हूं कि आखिर देश का नौजवानों में ये देश द्रोही भावनाएं आ क्यों रही हैं। 

मेरी समझ में ये दोनों ही विषय कानून समीक्षा में चर्चित होने चाहिए, अभी देखना बाकी है।

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